ज़िन्दगी
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'(चोका)
खुली किताब
कभी बंद मुट्ठी सी
मिश्री की डली
तो कभी सच्चाई सी
बंद तिजोरी
चौराहे, बाज़ार सी
नई नवेली
बासी अख़बार सी
बहती नदी
ठहरे तालाब सी
दबी सिसकी
खुले अट्टहास सी
उनाबी जोड़ा
विधवा लिबास सी
माँ की थपकी
अंधड़ तूफ़ान सी
दुखती रग
कभी मरहम सी
सुख के अश्रु
शोक के चीत्कार सी
गलती शीत
जेठ दोपहरी सी
अमा की रात
पूनम के चाँद सी
सीधी सरल
कभी कृष्ण लीला सी
ज़िन्दगी एक
रूप रंग अनेक
कई बाक़ी हैं
ए ज़िन्दगी तुझसे
मुलाक़ात बाक़ी है!
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