जवाब

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"अगर मैं तगादा न करूँ तो आप को तो कुछ भी याद न रहे . . . कितने दिन से कह रही हूँ कि गुप्ता जी से सीमा के रिश्ते की बात चलाओ . . . सुना है दो हफ़्ते में उनका बेटा अमरीका से आने वाला है . . . यूँ हाथ पे हाथ धर के बैठे रहे तो सारे अच्छे रिश्ते निकल जाएँगे . . . "

"लता, तुम सब जानते हुए भी ऐसा कह रही हो . . . गुप्ता जी पक्के व्यापारी हैं . . . सबसे कहते फिरते हैं कि बेटे की पढ़ाई में चाँदी लगाई है . . . तो क्या दहेज़ में सोने की उम्मीद नहीं करेंगे . . . ऐसों के घर अपनी बेटी देना क्या उचित होगा . . . "

"किसी लड़के की पढ़ाई कम बता देते हो . . . किसी की नौकरी हल्की बता देते हो . . . किसी का घर-परिवार पसन्द नहीं आता . . . आप ने तो कर ली बेटी की शादी . . . 

" . . . ये चंदा और छुट्टी लेकर बैठ गयी है . . . इस महीने में यह तीसरी छुट्टी है . . . मैंने टोका तो कह रही थी पैसे काट लेना . . . अपनी लड़की के लिए रिश्ता देख रही है . . . नखरे इतने हैं कि कोई नाक के नीचे ही नहीं आ रहा . . . हर बार कह देती है, "पसन्द ना आया, छोरी की ज़िंदगी का सवाल है बीबीजी, ऐसे कैसे किसी को भी दे दें,  . . . यह भी नहीं सोचती की दो छोरी और बैठी हैं इसके बाद ब्याहने को . . . 

"अब आप क्यों चुप्पी साधे बैठे हैं, मेरी बात का कुछ तो जवाब दीजिए . . . ."

"तुम्हें अब भी जवाब चाहिए . . . ," शुक्ला जी के चेहरे पर भीनी सी हँसी थी . . . बड़े इत्मीनान से उन्होंने अख़बार का पन्ना पलटा और चाय की चुस्की भरकर फिर से लीन हो गए . . . 

 . . . उन्हें पता था, लता अब कुछ देर तक, या शायद काफ़ी देर तक, कुछ नहीं कहेगी . . . !
 

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