चिट्ठियाँ
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
ताले की चाबी
जाने कहाँ छुपी थी
मिली है आज
सुखद एहसास
आज खुलेगा
दबा-घुटा सन्दूक
वर्षों के बाद
जिसमें हैं सौग़ातें
पुरानी यादें
मासूम से सपने
अल्हड़पन
कुछ अधूरे वादे
बड़ा अद्भुत
वो यौवन, सावन
जब खिले थे
दो मन उपवन
भीगे वे पल
नेह की बरसातें
मनभावन
शहद जैसी बातें
सब है दर्ज
प्रेम पत्र, चिठ्ठियाँ
बरसों मैंने
सम्भाली जो चिठ्ठियाँ
मेरा अतीत
वर्तमान, भविष्य
पीली पड़ी चिठ्ठियाँ!
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