कोरा मन
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
कली मुस्काई
थोड़ी-सी शरमाई
वसन्त आया
विरह दिन बीते
प्रेम की धुन
भँवरे गुनगुन
मीठी बतियाँ
कानों में कह जाएँ
फूलों से लदीं
बग़िया की क्यारियाँ
बहकें, झूमें
पुरवाई चुपके
सन्देसे लाए
मिलन गीत गूँजें
बिछुड़े मीत
सुखद प्रेम पाएँ
शुक्र मनाएँ
है चारों दिशाओं में
हर्ष उल्लास
मेरा कोरा ये मन
कोरा न रह जाए!
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