“आ गए आप . . .” साक्षी की आँखों की लौ कुछ पल को चमकी, फिर निस्तेज हो गई।
रोज़ की तरह सचिन का मोबाइल उनके कानों में गढ़ा हुआ था, “आप निश्चिंत रहिए, जब आप से कह दिया कि काम हो जाएगा तो बस हुआ समझिए . . . हाँ, बस आप आपना वायदा याद रखियेगा . . .”
ड्राइवर ने जाते हुए वही दोहरा दिया जो वो क़रीब-क़रीब रोज़ ही कहता था, “मैडम, साहब कह रहे थे वो खाना खा कर आये हैं, आप भी खाकर सो जाइये, उनकी एक मीटिंग है वो उसमें बिज़ी रहेंगे . . .”
साक्षी ने अनमनी-सी हामी भर दी।
अगले दिन सचिन साक्षी को देखते ही व्यंग्य कसते हुए बोले, “पता नहीं तुम्हारे चेहरे पर हमेशा बारह क्यों बजे रहते हैं . . . किस बात की कमी है तुम्हें . . . गाड़ी, बँगला, ज़ेवर, कपड़े, सब तो है तुम्हारे पास, फिर भी ये मायूसी भरा चेहरा लेकर घूमती हो . . . . . . सारा मूड ख़राब हो जाता है।”
साक्षी धीमी सी आवाज़ में बोली, “जहाँ इतना दिया है, एक चीज़ और दे दो . . .”
“अब भला तुम्हें और क्या चाहिए?“
”मुस्कुराने की वजह . . .”