सुख-दुख का जोड़ा

15-10-2021

सुख-दुख का जोड़ा

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

भाग१- मन दुखता है
 
एक शूल सा चुभता है, मन, दुखता है . . . 
 
जब लड़कियों के
सारे गुण एक पलड़े में, और
रूप-रंग, दूसरे में तुलता है
एक शूल सा चुभता है, मन, दुखता है . . . 

जब दहेज़ की रक़म
जुटाने में, दिन रात
पिता का जूता घिसता है,
एक शूल, सा चुभता है, मन दुखता है . . . 
 
जब जलसों के बाहर
कूड़े के ढेर पर, जूठे पत्तल
चाटता, कोई दिखता है
एक शूल सा चुभता है, मन, दुखता है . . . 
 
कारखानों की सुलगती
भट्टी, धुँए में, जब
नन्हा बचपन, कुम्लाहता है,
एक शूल सा चुभता है, मन, दुखता है . . . 
 
महत्वाकांशाओं का सुनहरा जाल,
नई पीढ़ी की लुभाता है, उन्हें
जुर्म की गिरफ़्त में पहुँचाता है,
एक शूल सा चुभता है, मन दुखता है . . . 
 
शहीद दिवस पर, जवान
मैडल पाता है, और केवल वही एक सौग़ात,
परिवार के लिए छोड़ जाता है,
एक शूल सा चुभता है, मन दुखता है . . . 
 
जब देश का अन्नदाता, किसान,
हमें भरपेट खिला, ख़ुद
आँतों में घुटने दे, भूखा सो जाता है,
एक शूल सा चुभता है , मन दुखता है . . . 
 
जब बूढ़े माँ बाप का जोड़ा,
सब कुछ बाँटकर, ख़ुद,
बच्चों के बीच, बँट जाता है,
एक शूल सा चुभता है, मन दुखता है . . . 
 
जब रिश्तों के नाम पर,
ख़ुदग़र्ज़ी और आधिपत्य का
स्वांग रचाया जाता है,
एक शूल सा चुभता है, मन,  दुखता है . . . 
 
अनदेखा करने के
लाख जतन करूँ, पर हर ओर,
यही मंज़र नज़र आता है,

एक, शूल सा, चुभता है,  . . . और मन,
वो . . . . बहुत दुखता है!!


भाग २- मन वासन्ती है
 
अब दुखते मन को, भला
ऐसे, कैसे छोड़ दूँ . . . 
जी चाहता है
इसके अंजाम को, नया
हसीन मोड़ दूँ . . . 
 
जब बेटियों के पिता,
दहेज़ की जगह, शिक्षा के लिए पैसे जुटाते हैं,
उनके हौसलों को पंख लगाते हैं,
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
जब नन्हा बचपन
चिड़ियों संग चहचहाता, घंटों
तितलियों के पीछे दौड़ लगाता है,
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
जब सरकारी योजनाएँ, 'जय जवान,जय किसान'
के नारे को, सार्थक कर जाती हैं,
उन्हें यथोचित सम्मान दिलाती हैं,
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
निशुल्क रसोईं, और लंगरों में,
माँ अन्नपूर्णा मुस्काती है, सब को
पोषित कर, तृष्णा मिटाती है,
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
जब औलाद जायदाद नहीं, माँ बाप के संग- साथ,
और सेवा की, होड़ लगाती है,
उन्हें पलकों पर बिठाती है,
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
जब रिश्ते, प्रेम, सद्भावना, और
समर्पण की चाशनी में पग जाते हैं,
सुख के, नित, नए अनुभव, पाते हैं
एक फूल सा खिलता है, वासन्ती मन, झूमता है . . . 
 
शुरुआत मुझी से होगी,
बदलाव मुझी को लाना है,
होंगे सपने साकार, यह सोच,
मुदित मन गाता है,
 
एक, फूल सा खिलता है, और मन ,
 . . . वो वासन्ती हो, झूमता है . . . !!

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