देर न करो
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
चलो चलते
इक जहाँ बसाते
ऐसा जिसमें
कोई ऊँचा, न नीचा
राग, न द्वेष
न कलह, न क्लेश
घृणा, न ईर्ष्या
भय, न अहंकार
जहाँ बसते
मधुरतम संवाद
प्रेम में पगे
आचार, व्यवहार
सद्भावना के
उच्चतम संस्कार
मान-सम्मान
सब का अधिकार
देर न करो
मुमकिन ये जहाँ
आ जाओ, मेरे साथ!
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