विडम्बना
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
(चोका)
चाह अगर
सुख की अनुभूति
उतर जाओ
दुःख की तलहटी
मौन गरिमा
जानना 'गर चाहो
शोर के मध्य
कुछ वक़्त बिताओ
जीवन साथी
परखना जो चाहो
विरह-अग्नि
दूरियाँ आज़माओ
विचित्र सी है
जीवन विडंबना
जो कुछ चाहो
उससे विपरीत
चखते जाओ
प्रकृति के नियम
रचे किसने
समय न गवाओ
सिर झुकाते जाओ!!
1 टिप्पणियाँ
-
पत्रिका में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुमन जी!
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता - हाइकु
- कविता-माहिया
- कविता-चोका
- कविता
- कविता - क्षणिका
-
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
- सिनेमा चर्चा
- कविता-ताँका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-