प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ – हाइकु – 001
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
1.
चुका रही हूँ
सब ऋण अपने
रहें न बाक़ी।
2.
क्यों नहीं रखते
तुम प्रेम प्रस्ताव
होगा स्वीकार!
3.
भूल गयी थी
सब कुछ सम्भव
मैं नारी, शक्ति!
4.
झाँके सवेरा
घूँघट जब खोले
निशा सलोनी।
5.
प्रिय मैं तेरा
कहा, अनकहा भी
सब समझूँ।
6.
पानी सी बही
पाषाणों के बीच मैं
चलती चली।
7.
महकी बूँदें
धरती से पाकर
सोंधी ख़ुशबू।
8.
सूई-धागे सी
दूजे बिन अधूरी
अपनी जोड़ी।
9.
सुख पिपासा
ज्यों कोई मृग तृष्णा
प्यासा ही छोड़े।
10.
पथ के साथी
निकले थे अकेले
जुड़ते गए।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता - हाइकु
- कविता-माहिया
- कविता-चोका
- कविता
- कविता - क्षणिका
-
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
- सिनेमा चर्चा
- कविता-ताँका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-