मेघा बरसे
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
प्यासा मनवा
तिल-तिल तरसे
इस बरस
भी अनबुझ आस
नहीं बदरा
फिर शून्य आकाश
बरसो मेघा
नारियल को
दमड़ी नहीं पास
ईश्वर तुम्हें
किस विधि मनाऊँ
भूखे उदर
है रोज़ उपवास
मेघा घुड़के
झर-झर बरसे
नव चेतना
फिर हुई संचार
हर्ष-लहर
हुआ गाँव मगन
कृपानिधान
तू ने किया कल्याण
जल समाधि
इस बरस टली
यूँ ही दरस दिखे।
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