प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 002
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1.
तोड़ी हमनें
रूढ़ियों की बेड़ियाँ
चैन की साँस
खुला, नीला आकाश
कुछ और न चाह!
2.
अधीर सा है
आज फिर ये मन
ढूँढ़ रहा है
कुछ प्रश्नों के हल
कुछ सुकूँ के पल।
3.
आख़िर क्या है
प्रेम की परिभाषा
कोई न जाने
राधा, मीरा, पद्मिनी
सीता या यशोधरा?
4.
स्कूल, कॉलेज
जीवन पाठशाला
सब पे भारी
चुन चुन दे शिक्षा
ज्ञान भरी पिटारी।
5.
तन चादर
साबुन तेल पानी
मैल न धुला
उर के अंतस में
वो था गहरा छिपा।
6.
चिंता हर ले
सुख, चैन, आराम
चिता समान
मत डर मन रे
प्रभु नाम भज रे।
7.
बत्तू है चाँद
मीठी मीठी बतियाँ
रोज़ सुनाए
न मुझे ही सोने दे
न ख़ुद सोने जाए।
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