ख़ुशीपुर
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'(इस कविता में देखिए कैसे हिन्दी का सफ़र, अंग्रेज़ी के सफ़र में बदल जाता है!)
पासपोर्ट, वीज़ा, टिकट
सब जारी है . . .
सफ़र की पूरी
तैयारी है . . . ।
छोटा भाई
पेटी बाँध,
अदब से बोले–
"आई सफ़र-इंग,
टू ख़ुशीपुर।"
मोटा भाई क्यों पीछे रहते
डबल अदब से
बग़ल से बोले–
"ई सफ़रिंग इन होल वर्ल्ड,
एण्ड इन ख़ुशीपुर।"
सारी सच्चाई हुई बखान
सभी सफ़र में,
सभी सफ़रिंग . . .
मन्ज़िल सबकी
एक ख़ुशीपुर,
जेब में सबके
पते हज़ार . . . !
हाय! री किस्मत!
ख़ुशी पुकारे–
"मुझको ढूँढ़ें
गली बाज़ार,
मैं घर पे बैठी
देखूँ बाट . . . !"
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