एक थी यशोधरा
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
नीरव रात्रि
एकांत में निकले
खोजने सत्य
सिद्धार्थ महल से
न कोई विदा
यशोधरा से माँगी
न कोई संकेत
जिससे जान पाती
नन्हा राहुल
छोड़ मैया सहारे
यशोधरा के
मन में निरन्तर
यही टीसता
क्या मैं बनती बाधा
साथ न देती
क्या यही सोचकर
निकल पड़े
वो बिना कहे-सुने
क्यों मन मेरा
पहचान न पाए
यही मनाऊँ
पावें ज्ञान प्रकाश
मोक्ष का मार्ग
जनहित दिखाएँ
हूँ बड़भागी
उनकी अर्द्धांगिनी
प्रेम पात्र बनी मैं!!
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