(चोका)
ऐसी क्या जल्दी
दो पल तो ठहर
उतरने दे
मख़मली पलों को
मन्द गति से
बेकल हृदय की
तलहटी में
आत्मसात हो जाए
मरुस्थल में
अविराम बहती
प्रेम की गंगा
वक़्त की बागडोर
फिसली जाए
हाथ जोड़ूँ, मनाऊँ
हम बेचारे
चंद पल हमारे
बस तेरे सहारे!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता - हाइकु
- कविता-माहिया
- कविता-चोका
- कविता
- कविता - क्षणिका
-
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
- सिनेमा चर्चा
- कविता-ताँका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-