अभिलाषा

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


1. 
मुट्ठी में चाँद
सिमट कर आया
तुझे जो पाया!
  
2. 
तेरे ही रंग
जाने-अनजाने में
रँगी पिया मैं! 
 
3. 
जैसा है चाँद
मन भाए, लुभाए
ऐसा ही तू भी! 
 
4.
हर क़दम
यही सोचती चली
काश! तू होता।
 
5. 
भूले से कभी
देखो अब न लेना
जाने का नाम। 
 
6. 
जीवन सारा
तुझ संग ही बीते
है अभिलाषा। 
 
7. 
याद तुम्हारी
दिल से नहीं जाती
प्रीत सताती! 
 
8. 
प्रेम कहानी
मिलकर बनाई
आदि न अंत।
 
9. 
देख, सोचती
मुझे चाँद चाहिए
तू मिल गया।
 
10. 
मन बग़िया
तेरे स्पर्श से झूमी
तू पुरवाई! 
 
11. 
हमने रखे
क़दम फूँक-फूँक
फिर भी जले। 
 
12. 
बात वही है
मन टीस उठाती
शाम वही है। 

13. 
तुम्हीं मित्र हो
तुम्हीं मार्गदर्शक
प्रियतम भी! 
 
14. 
नैनों की डोर
तुझ संग उलझी
कैसे सुलझे! 
 
15. 
रँग गई मैं
रंगरेज़ पिया रे
तेरे ही रंग। 

1 टिप्पणियाँ

  • एक और नवीन , सुन्दर अंक ! एक बार फिर , वही सुन्दर मंच! पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय सुमन जी का हार्दिक आभार !

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