फूस की सास

01-04-2021

फूस की सास

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

"माँ जी, आपके लिए तेल औटा दिया है . . . बस ठंडा होते ही बोतल में भर कर रख दूँगी . . . और आज रात से ही आपके घुटनों की मालिश शुरू . . . देखना कैसे सारा दर्द छू मन्तर होता है . . . "

एक ही साँस में पूनम बोलती भी जा रही थी और तार से सूखे हुए कपड़े भी उतारती जा रही थी . . . .

सासु माँ गद्‌गद हुई जा रही थी, बड़े लाड़ से बोली, "अरी बहुरिया, तू कभी बूढ़ी न होवे . . . "

चुलबुली पूनम सासू माँ का आशय समझ तो गयी पर हँसी दबाते हुए बड़ी मासूमियत से बोली, "तो माँ जी, क्या जवानी में ही चल बसूँ . . . ."

आँगन में चारपाई पर बैठी ददिया सास, माला रोक कर उलाहने भरे स्वर में बोली, "ले सुन ने सरला, अपनी चहेती की बात. . . . किसी ने सच ही कहा है, सास तो, फूस की भी बुरी . . . !"

सर्दी की गुनगुनी सी धूप से रहा न गया, इस प्यार भरी नोंक झोंक के बीच. . . . वो भी कुछ और खिल गई!

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