प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006

15-06-2021

प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

1.
चुपके से
बिन आहट,
वो दाख़िल हुआ . . .
घर किया
उसने दिल में,
न वापस गया . . .!
 
2.
इस क़दर
प्यार मुझसे,
किया न करो . . .
पड़ गई जो आदत,
करूँगी मैं क्या..?
 
3.
ये जो
नैनों से झरता हैं
यूँ ख़ुद ब ख़ुद . . .
ये बरसता है नेह,
सिर्फ़ तुम्हारे लिए . . .!
 
4.
नज़र भरके जो देखा
तेरा तो गया….
मेरा दिल मुझे
यूँ, दग़ा दे गया . . .!
 
5.
दीवानगी की हद,
फिर 
पार हो रही है . . .
एक और हीर,
रांझणा
हो रही है . . .!
 
6.
सरहदें पार करनी,
भले, 
न हों मुमकिन . . .
दीवानगी की हद,
पार होकर रहेगी . . .!

7.
न मर्ज़ का पता, न दवा 
समझ में आए . . .
ये इश्क़ तो नहीं,
दिन रात जो सताए . . .?
 
8.
ख़्वाबों की कश्ती,
मोहब्बत के समंदर में
उतर तो गई है . . .
इनायत तू अपनी
रखना ख़ुदा,
मेरी बात, लगता है
बन तो रही है . . .!
 
9.
पगडण्डी
यादों की,
रास्ते भुलाएँ . . .
मन रे,
न जाने, तू
काहे को जाए . . .!
 
10.
अजब है
ये जादू, जो
छा सा रहा है . . .
जिधर देखूँ
तू ही, नज़र
आ रहा है . . .।
 
11.
हँसता
चला चल, तू
काहे को रोता . . .
जो, ये भी न होता, 
तो सोच
क्या होता . . .!!
 
12.
बस आख़िरी
पड़ाव है,
तेरा दिल, मेरा . . .
इसके आगे,
मुझे और,
बढ़ना नहीं . . .! 
 
13.
ऐ ज़िन्दगी तेरे साथ
क़दम मिलाकर
चलना आ गया . . .
तूने जब जब किए मज़ाक
हँसकर,
टालना आ गया . . .!

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