राजीव कुमार – ताँका – 002

15-02-2024

राजीव कुमार – ताँका – 002

राजीव कुमार (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

1.
दिल के छाले
कब दिखनेवाले
एहसास नहीं
बेवफ़ायी का उन्हें
ख़ूब चाहा किसी ने। 
 
2.
हाथ पसारा
आँसुओं की न चली
हक़ न मिला
छीनने पे अमादा
अब शरीफ़ज़ादा। 
 
3.
करती रही
परेशान हमको
कश्मकश
बेबस हुआ दिल
यक़ीन मुश्किल। 
 
4.
जीवन रण
हटो न अकारण
चलता बन
अवरोधक पस्त
या तुम्हारा सूर्यास्त। 
 
5.
दिल का हाल
सवाल पे सवाल
कोई जो सुने
दिल बहल जाता
पराया दर्द भाता। 
 
6.
राज़ गहरा
तब तक पाबंद
दिल में बंद
फैली आपकी बात
रूसवाई के साथ। 
 
7.
मेले में मिले
पहचानने वाले
दिल तो खिला
हाथ उसका पर्चा
सारा मेरा ही ख़र्चा। 
 
8.
मौक़ापरस्ती
निभायी संजीदगी
है बेहूदगी
उनको न मलाल
कर डाला ये हाल। 
 
9.
हारे हुए लोग
सोंचे न इसे रोग
ढूँढ़ें एक योग
लक्ष्य पथ मूल
जो दे इसे तूल। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
कविता-ताँका
कविता - हाइकु
लघुकथा
सांस्कृतिक कथा
कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में