राजीव कुमार – 035

01-07-2024

राजीव कुमार – 035

राजीव कुमार (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

1.
नदी सा बहा
सागर से न मिला
जीवन मेरा। 
 
2.
पुष्प रस
मधुमक्खी का प्रेम
मधु का छत्ता। 
 
3.
सौर किरण
तंदुरुस्ती का मेला
भोर की बेला। 
 
4.
मोती सदृश
चमकी, हुई अदृश्य 
ओस की बूँदें। 
 
5.
बदला वेश
असलीयत छुपी
हावी है छवि। 
 
6.
मिट्टी ने बाँटे
देशभक्ति के फूल
गद्दार काटे। 
 
7.
नज़र ख़त
पढ़ने का हुनर
जाने जीगर। 
 
8.
मारनेवाला
अव्वल, मुकम्मल
बचाने वाला। 
 
9.
ख़ुद में घुंटा
बेआवाज़ ही टूटा
शीशा-ए-दिल। 
 
10.
आँखें छलकीं
आँखों का पानी बढ़ा? 
दर्द है जगा? 
 
11.
रात ने खोला
भर गया सितारा
कैसा पिटारा। 

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