आत्मा की शांति
राजीव कुमारमुरगी अपने अन्नदाता को मन भर के गालियाँ दे रही; उसका अनष्टि हो जाने का सोच रही थी।
अन्नदाता ने, दड़बे के बाहर ही चूल्हा सुलगाया और खौलते पानी में अंडे छोड़ दिए, जिनको मुरगी ने भारी प्रसव पीड़ा झेलने के बाद पाया था। चूज़ा या चूज़ी, भाग्य की बात, अपने ही स्वरूप के दर्शन को आतुर थी।
मुरगे के अचानक ग़ायब हो जाने का दुःख पुराना पड़ चुका था। संतान वियोग में दुःखी मुरगी के रोंगटे खड़े हो गए, गर्म पानी के एहसास भर से। ग़ुस्से में लाल और दुःख में आँसुओं से भीगी, मुरगी की दोनों आँखें दानव अन्नदाता को देख रहीं थीं।
मुरगी ने कहा, "मेरी संतान, पाँव में बंधे बँधन के कारण तुम्हारी माँ तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भर ही कर सकती है। वरना उस दानव अन्नदाता का अनिष्ट ही कर डालती।"
मुरगी की कुक्कड़ु कूँ की लगातार आवाज़ को अन्नदाता ने सामान्य सी बात समझा।
मुरगी अब अपनी संतान को अन्नदाता के आहार नाल के रास्ते पेट तक उतरता महसूस कर रही थी और संतान की आत्मा की शांति की प्रार्थना भी कर रही थी।
उसी समय अन्नदाता के घर में मेहमान आने पर, जब तक मुरगी समझ पाती, मुरगी की हत्या हो गयी।
अन्नदाता के पेट में जाकर मुरगी अपनी संतान और संतान अपनी माँ की आत्मा की शांति की प्रार्थना कर रहे थे।
2 टिप्पणियाँ
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बेहद संवेदनशील विषय
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उफ़्फ़! यह पढ़कर क्या कोई इंसान अभी भी मूक जीवों की आत्मा का क्रंदन को अनसुना कर स्वयं की जिह्वा रस को प्राथमिकता देगा?
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