मलवा

राजीव कुमार (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सीमेंट का निर्मित भवन एक झटके में धराशायी हो गया, मगर पिल्लर की मज़बूती अब भी बरक़रार थी और चारों पिल्लर आकाश की तरफ़ सिर उठाए खड़े थे। मलवे का पहाड़-सा बन गया था। 

काफ़ी मशक़्क़त के बाद मलवे में दबा सामान निकाल लिया गया था। मलवे के पत्थरों पर चढ़ कर पड़ोस के बच्चे खेल रहे थे मगर मुन्नी ग़ौर से मलवे की तरफ़ देख रही थी और कुछ पल के बाद मुन्नी ईंट को हटाने लगी तो उसके पिता महेन्द्र नाथ ने कहा, “क्या कर रही है बेटी, हाथ में चोट आ जाएगी। वैसे भी यह तो मलवा है।” 

मुन्नी ने मासूमियत से कहा, “पापा आपको याद है न कि इसी जगह पर अपना झूला टँगा था, देखिए इस जगह पर मैंने तस्वीर चिपकाई थी। इस जगह पर मम्मी खाना बनाती थी, देखिए उस जगह पर आप, मैं, दीपू भइया और मम्मी कैरम खेलते थे।” 

मुन्नी बारी-बारी से अंगुलियों के इशारे से बता रही थी। 

महेन्द्र नाथ को एहसास हो आया कि भवन तो मर चुका है मगर मलवा आज भी ज़िन्दा है। वो मुन्नी को गोद में उठा कर अपने नए घर की तरफ़ चल दिए। 

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