राजीव कुमार – 012

01-11-2022

राजीव कुमार – 012

राजीव कुमार (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

1.
दुखती रग 
अपने ही पकड़े 
ग़ैर क्या जाने। 
 
2.
दौड़ती गयी 
सरपट ज़िन्दगी 
अंधी दौड़ में। 
 
3.
भ्रष्टाचार में 
बेतहाशा है वृद्धि 
दे सदबुद्धि। 
 
4.
रंगरलियाँ 
बदनाम गलियाँ 
शरीफ़ज़ादे। 
 
5.
राहें चाहती 
मंज़िल तक पहुँचे 
राही हमारा। 

6.
मंज़िल तक 
सभी राहें हैं आतीं 
बना एक साथी। 
 
7.
मौक़ापरस्ती 
यक़ीन को लूटना 
सबसे सस्ती। 
 
8.
अनेक निति 
वोटों की राजनीति 
निगल जाती। 
 
9.
जलस्तर 
वृद्धि अनियंत्रित 
विनाश चित्र। 
 
10.
जल बिजली 
धरती पलायन 
मेघ दो लड़े। 
 
11.
दूरी न माप 
मंज़िल की गाफिल 
क़दम बढ़ा। 

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