बाग़ी

राजीव कुमार (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सांसद झुनझुना लाल जी अपने भाग्य को कोस रहे थे। उन्हें इस बार हार का मुँह देखना पड़ा। क्रोधाग्नि की लपटें उनके दिल से लेकर दिमाग़ तक और दिमाग़ से लेकर दिल तक आ-जा रही थीं। 

आँखों का पानी अब सूख चुका था। 

मगर उनके मुख से सहसा फूट पड़ा, “तुम लोगों पर इतना ख़र्च इसलिए किया था कि तुम लोग बाग़ी बन जाओ और मुझ से ही बग़ावत करो। एहसान फ़रामोश कहीं के।”

सांसद झुनझुना लाल जी की क्रोधाग्नि थोड़ी धूमिल हुई तब उन्होंने सोचा, “आख़िर जिन बाग़ी और एहसान फ़रामोश विधायकों के कारण चुनाव हारा हूँ, पिछली बार के चुनाव में इन्हीं एहसान फ़रामोश और बाग़ी विधायकों के कारण ही तो चुनाव जीत पाया था। भाग्य का खेल बराबर है।” ये सोचकर वो इस हार के सदमें से बाहर निकल पाए। 

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