राजीव कुमार – 039

15-09-2024

राजीव कुमार – 039

राजीव कुमार (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

1.
रात अकेली 
मंज़िल की सहेली
वो अलबेली। 
 
2.
रात नशीली
मंज़िल है सुहानी
बेनींद ऑंखें। 
 
3.
बाढ़ का पानी
तटबंध को तोड़
लाता विनाश। 
 
4.
परिवर्तन
नूतन पुरातन
यही जीवन। 
 
5.
जल जीवन
नदियाँ हैं बौराई
शामत आई। 
 
6.
ताप सहती 
तप उगलती
धरा हमारी। 
 
7.
बूँदों ने छेड़े 
दिल के टूटे तार
आई बहार। 
 
8.
दिल लाया में
छीना सब कुछ, वो
दिमाग़ लाया।
 
9.
पानी ही पानी
नदी की मनमानी
जीवन हानि। 
 
10.
आँगन खेली
बिटिया हरदम
आँखों ओझल।
 
11.
गहरा घाव
बहुत झेला मन 
ख़ुद ही कम। 
 
12.
रोई सिसकी 
ससुराल में बहू
ख़ता किसकी। 
 
13.
मन मयूरा
सजनी का वियोग
नृत्य अधूरा। 
 
14.
मरण काल
जवाब व सवाल
नहीं बवाल। 
 
15.
सुख की सेज
आज़ादी पाने तक
किये वो गुरेज। 
 
16.
दम है बढ़ा
परचम लहरा
बेटी विजय। 
 
17.
हवा में घुला
प्रदूषण के कण
बड़ी घुटन। 
 
18.
देख मुखौटा
असली चेहरे पे
आईना रूठा। 
 
19.
हवा ही नहीं
प्रदूषण का कण 
जल में घुला। 
 
20.
बातें दिल की
फ़ुरसत के पल
करेंगे चल। 
 
21.
दिल में रहा
दर्द लापरवाह
है परवाह। 
 
22.
दिल का दर्द
ज़ोर किसका चला
सहना पड़ा। 
 
23.
जीवनसाथी
अंत तक रहते
दिया हुआ बाती। 
 
24.
चला गया वो
निर्मोही वो निकला
जोड़ ना चला। 

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