आधार स्तम्भ
राजीव कुमारएक दुर्लभ सी चीज़ हवा में उड़ रही थी, जब वो थोड़ी-सी नीचे आई तो उसको एक और भी दुर्लभ प्रजाति हवा में उड़ते नज़र आई। दोनों की नज़र एक दूसरे पर पड़ी तो दोनों सकपका गए। दोनों को एक दूसरे से पहचान करने की सूझी।
पहली ने दूसरे से पूछा, "तुम कौन हो? पक्षी प्रजाति के तुम तो नहीं हो, फिर भी तुम्हारी उड़ान प्रशंसनीय है, कृपया तुम अपना परिचय दो।"
दूसरे ने जवाब में कहा, "मैं उड़ नहीं रहा था बल्कि मैं तो उछल रहा हूँ, मेरा नाम ’मुद्दा’ है।"
अब की बार प्रश्न मुद्दे ने किया, "पक्षी योनि की तो तुम भी नहीं लग रही हो। क्या तुम भी मेरी तरह उछल रही हो? तुम भी अपना परिचय दो।"
उसने जवाब में कहा, "नहीं भाई, मैं उछल नहीं रही हूँ, मैं तो उड़ती हूँ, चारों दिशाओं में, इस देश से उस देश तक। मेरा नाम ’अफ़वाह’ है।"
चूँकि ’मुद्दा ’ उछला था, सो नीचे गिरने लगा तो ’अफ़वाह’ ने गिरने नहीं दिया। थोड़ी दूर चलकर ’अफ़वाह’ डगमगाने लगी तो ’मुद्दे’ ने उसको मज़बूती से पकड़ लिया।
दोनों नीचे उतरकर मंत्री जी के बगीचे में आए और दोनों बंदी बना लिए गए। आज भी दोनों पिंजड़े में हैं। और प्राचीन काल से लेकर आज तक ’मुद्दा’ और ’अफ़वाह’ कूटनीति के आधार स्तम्भ बने हुए हैं।
शायद हमेशा ही कूटनीति का पोषक ’मुद्दा’ और ’अफ़वाह’ को पोषण प्रदान करता रहेगा।
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