नेताजी भरमाते हैं
महेश कुमार केशरी
नेताजी हैं चालू,
जनता का भाव लगाते हैं।
पौवा-पेटी, अद्धा में
जनता को फुसलाते हैं॥
वाक् पटु हैं नेताजी
अपनी वाणी से सबको भरमाते हैं।
हर बार दिखाकर अपनी बत्तीसी
अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं॥
किसी को कहते घर दूँगा
किसी को कहते सड़क दूँगा
किसीको बिजली दूँगा
किसी को कहते पानी दूँगा
कहकर सबको ये भरमाते हैं।
जनता भयी बल्ले की गेंद
नेताजी जनता को पाँच साल
तक चौक्के-छक्के लगाते हैं॥
बीच-बीच में जनता उनका
विकेट ले जाती है . . .
लेकिन, नेताजी रक्त बीज की तरह
फिर-फिर आ जाते हैं।
जब जीत जाते हैं चुनाव
तो अपने वादे से मुकर जाते हैं॥
रंग है, इनका मुकरना
जल्दी से पहचानो जनता।
इस बार करो इनका बहिष्कार
आयें जब माँगने वोट तुम्हारे द्वार॥
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