और, घर मुस्कुरा पड़ा

15-02-2025

और, घर मुस्कुरा पड़ा

महेश कुमार केशरी  (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मँगत बाबू, मोती बाबू के पुराने मुलाज़िमों में से एक थे। मोती बाबू का देहांत इधर हाल ही में हो गया था। मोती बाबू ने अपनी इसी छोटे से गल्ले की दुकान से अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया-लिखाया था, जहाँ मँगत बाबू काम करते थे। 

आज मोती बाबू के दोनों बच्चे अंकित और अजय ऊँची जगह पर किसी बड़ी कंपनी में काम कर रहे थे। मोती बाबू के जाने के बाद मँगत बाबू अब इस घर में अकेले बुज़ुर्ग बचे थे। बचपन से लेकर जवानी और यहाँ तक कि लगभग पूरा बुढ़ापा भी उन्होंने इसी परिवार की सेवा में काट दिया था। अंकित और अजय को वो बचपन से ही बड़े होते देख रहे थे। घर में अब अंकित, अजय और उनकी पत्नियाँ दर्शी और प्रीति रहती थीं। मोती बाबू की पत्नी सरला देवी अक्सर बीमार रहती थी। 

चूँकि मोती बाबू की दुकान अब बंद हो गई थी इसलिए मँगत बाबू की ज़रूरत अब उस दुकान पर नहीं रह गई थी। लेकिन, मँगत बाबू ने शादी नहीं की थी और उनका कोई बच्चा भी नहीं था। मँगत बाबू ने इधर सालों से अपने रिश्तदारों से भी कोई संपर्क नहीं साधा था। वो बड़ी दुविधा में थें। कि उनका तो कोई घर भी नहीं है। और भला अब इस बुढ़ापे में वो आख़िर कहाँ जायेंगें? और इस उम्र में आख़िर एक बूढ़े नौकर को भला कौन रखेगा? 

किसी तरह दस दिनों तक वे रुके रहे। जब मोती बाबू के सारे मेहमान विदा हो गये तो एक दिन वो भी चलने को हुए। दो-जोड़ी कपड़े और कुछ ज़रूरत का सामान ट्रंक में रखकर वो घर से बाहर निकलने को हुए। लेकिन, सरला देवी और अजय, अंकित को बताना भी तो ज़रूरी था कि वो जा रहे हैं। लेकिन उन्हें ये बातें कहते हुए झिझक भी हो रही थी। लगभग चालीस साल का सम्बन्ध ऐसे ही ख़त्म थोड़े होता है। उन्होंने छड़ी, धोती और ट्रंक सँभाला और बैठक में आ गये और अंकित से बोले, “अच्छा अंकित, बाबू अब आज्ञा दीजिए। परमात्मा की कृपा से मैंने जीवन में मोती बाबू और आप लोगों की बहुत सेवा की। अब मोती बाबू नहीं रहे। और दुकान भी बंद रहती है। अब मेरी ज़रूरत इस दुकान में नहीं है। इसलिये मुझे अब आज्ञा दीजिये अंकित बाबू। गाँव जाकर वहीं कोई खेती-बाड़ी या कोई दूसरा छोटा-मोटा काम करूँगा।” 

अंकित दफ़्तर के लिये निकलने वाला था। मँगत बाबू की बात सुनी तो वहीं रुक गया। और आश्चर्य से मँगत बाबू का सामान हाथ से लेकर ज़मीन पर रखते हुए बोला, “आप इस उम्र में भला कहाँ जायेंगे, मँगत चाचा? आप कहाँ जाकर रहेंगे? चालीस साल तक आपने हमारी सेवा की। और, अब अचानक ही ऐसे-कैसे चले जायेंगे? आपका तो गाँव पर कोई घर भी नहीं है। आख़िर, आप कहाँ जाकर रहेंगें? किसी ने घर में आपसे कुछ कहा है क्या?” 

अंकित ने वहीं से अपनी पत्नी और माँ को आवाज़ दी। दर्शी और सरला देवी अंकित की आवाज़ सुनकर बैठक में आ गईं। तब अंकित ने माँ और दर्शी को मँगत चाचा के घर से जाने की बात बताई। 

अंकित की बात सुनकर सभी लोग सकते में आ गये। प्रीति भी काम छोड़कर अंकित की बात सुनने के लिये बैठक में आ गई। 

अजय मार्केट गया हुआ था। कोई सामान लाने। उसने भी ये बात सुनी। तो सकते में आ गया। 

“आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, मँगत चाचा। जैसे आप हमारे घर में पहले से रहते आ रहे थे, वैसे ही अब आप आगे भी रहेंगे। बाबूजी हमारे साथ रहते थे, तो हमें बहुत हिम्मत थी। उनके आशीर्वाद से इस घर में अब कोई कमी नहीं है। लेकिन एक पिता की कमी इस घर में है। आज से आप इस घर में हमारे चाचा नहीं पिता की हैसियत से रह सकते हैं। आप उनकी जगह लेकर इस घर की और हम बच्चों की देखभाल पहले की तरह करते रहें। ये आपसे हमारी एक विनती है।” 

“हाँ, अजय ठीक कह रहा है, मँगत जी आप यहीं रहें। और बच्चों की देखभाल करें। बिना बुज़ुर्गों के घर सूना-सूना सा लगता है,” सरला देवी आँखों के कोर पोंछती हुई बोलीं। 

मँगत चाचा की आँखें अब भींगने लगी थीं। कहाँ तो वे ये सोच रहे थे कि वो कहाँ और किसके पास जाकर रहेंगे? और कहाँ तो उन्हें इतना प्यार मिल रहा था। और, भला इतना प्यार पाकर कोई कहाँ जा सकता था। 

दर्शी और प्रीति ने मँगत चाचा का ट्रंक और छाता हाथ से ले लिया। और उनके कमरे में रख आईं। 

ऐसा होते देख घर भी मुस्कुरा पड़ा! 

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