सूरज

महेश कुमार केशरी  (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सूरज पिता की तरह
होता है,
जो धूप के साथ इन
सबसे आगे . . . आगे चलता है
कुदाल, मिट्टी, जल, हवा, ताप, ओस और
सूखे का हाथ पकड़े . . .
कि तुम्हें
इस धरती के उस पार भी
किसी सुदूर ग्रह पर भी चलना है
दूसरे लोगों
का पेट भरने . . .
और लौटना है, बार बार
फिर, कुदाल, मिट्टी और
ओस के बहाने
फ़सल बनकर!

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