कुदाल 

महेश कुमार केशरी  (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कुदाल छीलती है 
धरती का सीना और 
उगाता है सोना . . .
कुदाल के होने का मतलब 
है, हम भाग्य के भरोसे 
नहीं बैठे हैं 
हम हाथ और कुदाल 
के भरोसे बैठे हैं 
कुदाल और हाथ मिलकर 
धरती के पेट से निकालेंगे
सोना 

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