कील-2

महेश कुमार केशरी  (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कीलों ने हमेशा चाहा
की वे
हमेशा पुल बनें
और हमेशा जोड़ती जायें
आने-जाने का रास्ता . . .
 
उन्होंने सीढ़ी बनना गवारा
किया ताकि लोग आगे 
बढ़ सकें और छू 
सकें आसमान . . .
 
कील बनाने वाली सोच 
ने कभी ये नहीं सोचा कि 
उससे बनाई जाये
कोई बंदूक . . . 
 
या कि लैंडमाइंस 
जिससे लोग लहूलुहान हो जायें
और, मर जायें 
 ज़ब्‍ह किये हुए बकरे की तरह 
फड़फड़ाकर . . .
 
उन्होंने साबुत ठुकना 
मंज़ूर किया 
ताकि और लोगों का वुजूद बचा 
रहे . . . 
 
फिर, किसने सोचा बंदूक 
बनाने के लिए 
या फिर, लैंडमाइंस में किसने 
किया
कीलों का इस्तेमाल . . .? 
 
कीलों ने आदमी
के लिए कभी ऐसा 
नहीं सोचा . . .
 
फिर, कौन हैं 
वो, हाथ जो बनाते हैं 
बँदूक, और बिछातें
हैं, लैंडमाइंस . . .? 

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