इंतज़ार में है गली! 

15-06-2022

इंतज़ार में है गली! 

महेश कुमार केशरी  (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ये अजीब इत्तिफ़ाक़
है, उस लड़की के साथ कि
एक ही राह से गुज़रते हुए
एक ही रास्ते में पड़ता है 
उसका घर और, ससुराल 
 
सड़क से गुज़रते वक़्त 
मुड़ती है एक गली 
जो जाती है उसके पीहर
तक, 
 
पीहर, कि गली से लौटते समय 
बहुत मन होता कि वो 
घूम आये अम्मा-बाबू के घर 
कि देख आये अपने हाथ से लगाया 
पेड़ पर का झूला . . .
 
दे, आये फिर, तुलसी-
पिंडा को पानी . . .
 
दिखा दे एक बार फिर, 
घर-आंँगन में बाती 
 
या कि घर के आँगन के 
काई लगे हिस्से को 
रगड़-रगड़ कर कर दे साफ़
जहाँ, सीढ़ियाँ उतरते 
वक़्त गिर गई थीं माई
 
दे, आये एक कप चाय 
और, दवाई अपने बाबू को
जिनको चाय की बहुत तलब 
लगती है 
 
जमा कर दे फिर से
अलमारी में 
घर के बिखरे कपड़े 
 
सीलन लगी 
किताबों को दिखा 
आये, धूप
 
दुख रहे सिर, पर 
रखवा, आये अम्मा 
से तेल
करवा आये 
एक लंबी मालिश
 
खाने, चले चूरण वाले 
स्कूल के चाचा की चाट . . .
 
कर, ले थोड़ा ठहरकर 
अपने भाई-बहनों और पड़ोस 
की सहेलियों से हँसी और ठिठोली
 
दौड़कर, चढ़ जाये वो, 
छत की सीढ़ियाँ . . .
 
बाँध, आये भाई कि कलाई 
पर राखी 
 
एक बार फिर से भर ले 
अपनी आँखों में ढेर सारी नींद . . .
 
लेकिन, नहीं क़दम अब 
उधर नहीं जाते, नहीं थमते
उस दरवाज़े तक 
जहाँ सालों रही . . . 
 
एक अजनबीपन उतर आया 
है, उसके व्यवहार में 
नहीं ठहरते उसके क़दम
पीहर तक आकर! 
 
वो, जानबूझकर, बढ़
जाती है आगे . . .
जहाँ पहुंँचकर उसका 
एक आँगन और उसके बच्चे 
इंतज़ार कर रहे हैं 
उसका . . .
 
बाट, जोहती और 
ताकती हुई गली हैरत 
में है, लड़की को देखकर! 

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