भ से भय 

15-10-2025

भ से भय 

महेश कुमार केशरी  (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

उनके आसपास शोर है 
बहुत शोर इतना शोर 
की कोई आवाज़ उन तक पहुँच 
ही नहीं पाती . . . 
 
एक लिजलिजी आवाज़ 
जो कराह रही है सालों से
 
लोग
आश्चर्य से चौंक-चौंक से पड़ते हैं 
अपनी ज़रूरत की बातों को उनके
 मुँह से सुनकर 
 
ग से ग़रीबी 
ब से बेरोज़गारी 
भ से भूख 
 
फिर वो पहलू बदलते हैं 
भ से भ्रष्टाचार ख़त्म करेंगे 
ग से ग़रीबी हाटएँगे
ह से हर हाथ को काम दिलाएँगे 
 
लोग हतप्रभ हैं, उनके इस 
जानकारी और ज्ञान पे 
जब माईक से निकलती है 
बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार 
अशिक्षा रूपी दानव को इसी साल 
बस इसी साल वो ख़त्म कर देंगे 
 
देश ख़ुशहाल हो जाएगा एक बार 
फिर से
भूखों के घर में अनाज होगा 
किसान मालामाल होगा 
पढ़े-लिखे लोगों को रोज़गार मिलेगा 
कच्ची सड़के पक्की होगी॥
 
घ से घर 
सबको पक्का घर दिलाएँगे 
 
पता नहीं उनको ऐसा क्यों लगता है 
कि इस लोकतंत्र में उनको 
सुनना बहुत ही ज़रूरी है 
उनको सुनने से ही बदहाली-बेकारी दूर हो जाएगी 
बन जाएँगी टूटी-फूटी सड़कें 
सड़कों पर का अँधेरा उनको सुनने भर से 
तुरंत ख़त्म हो जाएगा 
 
लेकिन‌, वो आश्वस्त हैं इस बार 
चारों तरफ़ मची है मार-काट 
लेकिन ज़रूरी है चुनाव 
और इस बार बड़े ग़ौर से सुन रही भीड़ 
उनको 
 
फिर, वो अपना आख़िरी 
हथियार चलाते हैं 
एक नया शिगूफ़ा छोड़ते हैं 
हमें भ से भयाक्रांत 
नहीं होना है 
लोगों के कान इस बार खड़े हो जाते हैं 
डरना नहीं है हमें 
हम डरपोक नहीं हैं जो हम उनसे डरें 
उनसे जिन्होंने दस-दस बच्चे पैदा किए हैं 
वो मंच से ही अघोषित युद्ध की घोषणा करते नज़र 
आते हैं 
उनसे लड़ना है हमें तो अपनी आबादी बढ़ाइये
चखाइए अपने घरों में रखे तलवारों को 
लहू का स्वाद . . . 
स्वाभिमान के साथ जीने की 
हमेशा क़ीमत देनी पड़ती है 
खरोंचिए, अपने पौरुष को 
जिस पर जँग लग रहा है 
 
वो मोड़ चुके हैं, जनता को 
उतार चुके हैं शीशे में 
ग ग़रीबी
भ से भूख 
ब से बेरोज़गारी 
म से महँगाई 
श से शिक्षा 
प से परीक्षा 
भ से भविष्य सब गौण हो गया है॥
भ से भय के आगे! 

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