अवचेतन में कहीं . . . 

15-10-2023

अवचेतन में कहीं . . . 

महेश कुमार केशरी  (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

एक बार नाहट ने जेनिफ़र को प्रेम करने के लिये उस टूटे हुए स्कूल में बुलाया था। वो लोग अभी प्रेम करने की शुरूआत कर ही रहे थे कि असलम आ गया। असलम, नाहट का पड़ोसी और दोस्त था। और रंग में भंग पड़ गया। उसका पहला एडमिशन एक मिशनरी वाले स्कूल में हुआ था। उसमें फ़ादर पढ़ाते थे। फ़ादर, बड़े ग़ुस्सैल स्वभाव के थे। जब वो छड़ी से मारते तो पीठ पर लंबे-लंबे निशान पड़ जाते। नाहट की माँ इस तरह की मार-पिटाई की शिकायत लेकर अक़्सर स्कूल में जाती और फ़ादर से कंप्लेन करती। नाहट का घर और मिशनरी का स्कूल आसपास था। घर से, स्कूल की घंटी की आवाज़ साफ़ सुनाई पड़ती थी। नाहट खाने की मेज़ पर बैठा होता। और सुबह का नाश्ता कर रहा होता। लेकिन, जैसे ही स्कूल की घंटी बजती, नाहट नाश्ता छोड़कर भाग खड़ा होता था। 

फ़ादर बड़ा खड़ूस टाइप का था। हमेशा चिड़चिड़ा टाइप का रहता। बच्चों से ख़ूब चिढ़ता। 

फ़ादर आदिवासी से कंर्वट हुआ ईसाई था। उनका स्कूल कुल चार कमरों का था। उसका स्कूल सीढ़ियों से चढ़कर दो मंज़िल पर था। सीढ़ियाँ ख़त्म होते ही स्कूल के सामने का ऑफ़िस था। उसके फ़ादर, चूँकि आदिवासी से कंर्वट हए थे। इसलिए नाहट की हेड मिस सिंदूर लगाती थीं। और कभी-कभी सिंदूर का टीका भी। लगभग दो पीरियड ख़त्म होने के बाद। हेड मिस, फ़ादर को चाय देने के लिये आती थीं। अक़्सर उनका टीका (सिंदूर से बनाया हुआ) मिटा या अधमिटा या ख़राब सा दिखता था। या बिगड़ा हुआ दिखता था। नाहट को हमेशा ये लगता कि फ़ादर ने ज़रूर उनके साथ कुछ ना कुछ किया है। कुछ ना कुछ का मतलब छेड़-छाड़ की है। ख़ैर, नाहट को अक़्सर हेड मिस्ट्रेस के लिपस्टिक और बाल बिखरे मिलते थे। लिहाज़ा कुछ भी साफ़-साफ़ नहीं कहा जा सकता था। 

नाहट की माँ बहुत सनकी औरत थी। उसकी किसी से नहीं बनती थी। एक बार की बात है। वो उसी मिशनरी स्कूल में पढ़ता था। अभी-अभी स्कूल शुरू होने का समय हुआ था। उस दिन उसे स्कूल जाने का मन नहीं था। पिता इस बात पर मान गये थे। उसे अच्छी तरह से याद है। वो वहीं पलंग पर बैठा हुआ था। अनजाने में वो पलंग से गिर गया था। और उसके घर में रखा हुआ घड़ा उससे टूट गया था। 

लिहाज़ा, उसकी माँ ने उसे मारते-मारते स्कूल पहुँचा दिया था। 

देर, से आने के कारण स्कूल में भी उसे मार पड़ी थी। उसका दुःख अलग से नाहट को था। 
ख़ैर; बाद में उसके पिता ने उसका नाम मिशनरी स्कूल से कटवाकर एक साधारण से सरकारी स्कूल में लिखवा दिया था। मिशनरी स्कूल में नाहट चौथी कक्षा में पढ़ता था। लेकिन, नाहट सरकारी स्कूल के टेस्ट में फ़ेल हो गया था। इसलिये उसका नाम कक्षा तीन में लिखा गया। उस समय संस्कृत में एक टीचर थे—पंडित सर। पंडित सर ने ज्वाइनिंग के बाद ही वहाँ से मैट्रिक का एग्ज़ाम पास किया था। पंडित सर बहुत अनुशासन पसंद व्यक्ति थे। छात्रों को बहुत पीटते थे। 

क्लास में एक बार नाहट ने चार-पाँच संस्कृत वाले शब्दों का रट्टा मार लिया था और उसे पंडित सर को याद करके सुना दिया था। पंडित सर ने उस पर दस्तख़त कर दिया था। इसी को नाहट होमवर्क चेक के समय दिखा देता था। और बार-बार बच जाता था। अब वो स्कूल से बंक मारकर बाहर जाने लगा था। दोस्तों के साथ। एक बार उसके घर में उसके पिताजी को पता चल गया था कि वो स्कूल बंक करके फ़िल्म देखने चला गया था। नाहट को अच्छी तरह याद है। वो आधी फ़िल्म देखकर ही वापस आ गया था। फ़िल्म का नाम भी उसे अच्छी तरह याद है—फ़रिश्ते। ये फ़िल्म विनोद खन्ना और धर्मेंद्र वाली थी। उस दिन नाहट की माँ ने नाहट को बताया था कि तुम्हारे पिताजी बहुत ग़ुस्से में हैं। स्कूल वाले अगले दिन वो अटेंडेंस शीट चेक करने जायेंगे तुम्हारे स्कूल। उस रात नाहट को पूरी रात नींद नहीं आई थी। अटेंडेंस रजिस्टर की जाँच के कारण। 

उसी स्कूल में एक योगा और शारीरिक शिक्षा के शिक्षक थे। अतुल सर। पाँचवीं के टीचर। वो स्कूल में पी.टी. का सारा काम देखते थे। कुछ लड़कों को पी.टी. करना अच्छा नहीं लगता था। वो, जानबूझकर क्लास में लेट से आते। पता नहीं पी.टी. सर को ये बात कौन बता देता था कि ये अमुक-अमुक लड़के देर से आये हैं। यानी पी.टी. ख़त्म होने के बाद। 

मोटी और गद्देदार लड़कियाँ पी.टी. सर की कमज़ोरी थीं। पी.टी. सर उनके कूल्हे और पीठ पर ख़ूब हाथ फिराते थे। उस स्कूल में साईंस के भी टीचर थे। जो साईंस पढ़ाते थे। एक दम बेवकूफ़ क़िस्म के शिक्षक। महापुरुषों का ज़िक्र होता तो साईंस टीचर बताते कि वे लोग असाधारण लोग थे। लेकिन हम तो साधारण भी नहीं है़ं। तो नाहट के आसपास ऐसे-ऐसे शिक्षक थे। जिनको साधारण और असाधारण में फ़र्क़ नहीं पता था। एक बार किसी बात पर उन्होंने नाहट को पीट दिया था। नाहट को इतना ग़ुस्सा आया था कि पूछो ही मत। उसको जब पीटा गया था तो पूरी क्लास शांत थी। उस कक्षा सात में उसकी एक नयी-नयी प्रेमिका बनी थी। नाम था उसका लाली। लाली, नाहट की पड़ोसन भी थी। जब नाहट की पिटाई हुई थी। साईंस टीचर के द्वारा; तब नाहट को बहुत बुरा लगा था। और नाहट ने पिटने के दौरान टूटे तीन बालों को गिनकर अपनी किताब में छिपाकर रख लिया था। ये सोचकर कि जिस दिन भी उसे मौक़ा मिलेगा, वो इसका बदला ज़रूर ले लेगा। लेकिन वो दिन कभी नहीं आया। 

ख़ैर, वो लीला की बात कर रहा था। वो, छठी कक्षा में उस समय पढ़ता था, जिस समय उसके पिता ने किराये पर दूसरी जगह रूम लिया था। यहीं उसकी मुलाक़ात लीला से हुई थी। सरकारी स्कूल में आने के बाद नाहट एक मेधावी छात्र के रूप में जाना जाने लगा था। उससे लीला बहुत प्रभावित थी। फिर, दूसरी बार नाहट ने एक प्रेम पत्र लिखा था जो उसकी माँ ने पकड़ लिया था। दरअसल लीला नाम की दो लड़कियाँ थीं। एक लड़की उसके फल और सब्ज़ियों के दुकान के ऐन सामने रहती थी। उसकी मिठाई की दुकान थी। नाहट बार-बार उसकी दुकान से मिठाई ख़रीदता था। पहली वाली, लीला काॅलोनी वाली लीला से बहुत बेहतर थी। उसकी छातियाँ भरी-भरी थीं। उसको भी डिंपल आते थे। और नाहट की कमज़ोरी थी। भरी-भरी और बड़ी छातियों वाली लड़कियाँ। ख़ैर; उसने जो लेटर लिखा था। वो पहली वाली लीला के लिये लिखा था। लेटर जब पकड़ा गया तो नाहट बच गया। नाहट की माँ को लगा, कि नाहट ने काॅलोनी वाली लीला के लिये वो लेटर लिखा है। ख़ैर; नाहट की माँ ने नाहट को समझाया। ये लोग जाट हैं। इनकी छोरियों को लेटर मत लिखा कर। नहीं तो बात का बतंगड़ बन जायेगा। 

इस तरह भारी छातियों और डिंपल निकालने वाली लड़की लीला के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला था। 

♦    ♦    ♦

तो बात लीला की हो रही थी। लीला जो दूसरी वाली थी। उसकी छातियाँ पिचकी हुई थीं। उसके शरीर में मांस नहीं था। फिर भी वो नाहट की पडोड़ोसन थी। पढ़ाई में भोथी थी। एक बार की बात है क्लास में भूगोल का पेपर दिखाया जाना था। उस दिन तुक्के से लीला का नंबर नाहट के बराबर आया था। उस दिन नाहट देर रात तक बहुत रोया था। नाहट को अच्छी तरह याद है। नाहट उस समय छठी कक्षा में पढ़ता था। लीला और नाहट एक ही कक्षा में पढ़ते थे। उस दिन नाहट ने पहली बार कक्षा में लीला से पानी माँगा था। क्लास जब ख़त्म हुई तो नाहट के दोस्त नाहट की चुटकी ले रहे थे और नाहट मुस्कुरा रहा था। हालाँकि, दूसरी वाली लीला जिसको डिंपल नहीं निकलता था। उतनी आकर्षक नहीं थी। ख़ैर! ये किशोरावस्था का प्रेम था। 

आठवीं में नाहट को ट्यूशन पढ़ने की ज़रूरत पड़ी। सरकारी स्कूल में भी टीचरों का बैकवर्ड-फ़ारर्वर्ड वाला ग्रुप था। नाहट ने टीचरों को बच्चों की तरह ग्रुप बनाकर लड़ते देखा था। जो छात्र साईंस वालों के पास नहीं पढ़ता था। उनको मैथ्स और साईंस में नंबर कम मिलने थे। साईंस, मैथ्स और पी.टी. सर का एक कुनबा था। जो आर्ट्स वाले सर थे, उनका नाम हितेष सर था। वो, ओ.बी.सी. से थे। जिनसे ये फ़ारर्वर्ड ग्रुप जलता था। क्लास के सारे बच्चे हितेष सर के पास ही ज़्यादातर ट्यूशन के लिये जाते। फ़ारर्वड तिकड़ी को ये बात अखरती थी। कारण की हितेश सर एक तो ओ.बी.सी. से थे। दूसरे वो आर्टस के टीचर थे। बावजूद इसके ज़्यादातर छात्र उनसे ही कोचिंग लेते। ये बात इन तिकड़ी को चुभती थी। 

हितेश सर इंग्लिश के ग्रामर की किताब भी स्कूल में बेचते थे। स्कूल में ही एक लकड़ी की अलमारी थी। हितेश सर ताली में बंद कर किताबों को रखते थे। वहीं से निकालकर वो ग्रामर की किताबें बेचते थे। ख़ैर; हितेष सर की मैथ्स और इंग्लिश और भूगोल सब चीज़ बढ़िया थीं। नाहट ने ईष्या और द्वेष उस स्कूल के टीचरों में साफ़-साफ़ देखा था। मुदित सर गणित के शिक्षक थे। और वो भी फ़ारर्वर्ड थे। 

♦    ♦    ♦

ख़ैर; लीला की बात पर आता हूँ। हमारा स्टैंडर्ड बढ़ने लगा था। और हम और दूसरी वाली लीला जिसको डिंपल नहीं पड़ते थे, दोनों साथ-साथ हाई स्कूल तक गये। नाहट को लगता है कि दुनिया में कुत्तों सा वफ़ादार कोई नहीं होता है। वहीं, लड़कियों सा गद्दार कोई नहीं होता है। हाईस्कूल पहुँचने के बाद लीला का व्यवहार नाहट के प्रति बहुत रूखा-रूखा हो गया था। दूसरी वाली लीला बहुत बदल गई थी। इस स्कूल में को-एजुकेशन जैसी ही व्यवस्था थी। लेकिन, लड़कियाँ ऊपर वाले माले पर रहतीं थीं। और लड़कों की नीचे के कमरों में कक्षायें लगती थीं। अब लीला अपने सहेलियों के साथ आती-जाती थी। नाहट से कभी भूले से भी बात नहीं करती थी। नाहट साफ़ दिल का था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि लीला आख़िर इतना क्यों बदलती जा रही है। सब लड़कियाँ ही ऐसी होती हैं। इनकी कोई थाह नहीं होती है। इधर हाल की बात है। उसके ससुराल में उसकी दो सालियाँ थीं। दोनों से नाहट के अच्छे सम्बन्ध थे। लेकिन, एक दिन उसे पता चला की उसकी दोनोें सालियों ने उसे फ़ेसबुक पर ब्लाॅक कर रखा है। नाहट आज भी लीला के इस तरह के व्यहवार से दुःखी था। और अपनी दोनोें सालियों से भी। जब किसी को किसी बात की सज़ा मिलती है। तो उसे उस सज़ा का कारण भी बताया जाता है। अब ये क्या बात हुई कि कोई आपका ख़ास हितैषी जो आपसे लगातार बात कर रहा हो, अचानक से आपसे बात करना ही बंद कर दे। इसलिये भी नाहट को लगता है कि दुनिया में सबसे बेवफ़ा जो चीज़ है। या कोई बहुत बुरी शै है तो वो औरत ही है। इसलिए भी नाहट को औरतों से नफ़रत है। 

♦    ♦    ♦

उन्हीं दिनों की एक घटना है। नाहट छठी कक्षा में पढ़ता था। उसके कुछ दोस्त थे। अमरीश, दानिश, जुबैर और बिंद्रा। छठी कक्षा में कुछ लड़कियों की कहासुनी इन लड़कों से हो गई थी। नाहट के स्कूल के पास एक बहुत पुराना जंगल था। इतना पुराना और घुमावदार जंगल कि उसमें कई लोग जाकर गुम हो गये थे। ख़ैर, इस जंगल में रात की कौन कहे, दिन में भी लोग जाने से डरते थे। पहले स्कूल था। उसके बाद एक नदी पड़ती थी। और उसके बाद वो जंगल था। उसी जंगल से अलकुस्सी (एक तरह का खुजली फैलाने वाला जंगली पत्ता। जिसके शरीर पर लगने से ही आदमी बहुत ज़ोर-ज़ोर से हाथ पैर खुजाने लगता था। इसको ठीक करने का बस एक ही उपाय था कि अलकुस्सी वाली जगह पर गाय या भैंस का गोबर लगाया जाये) मिलती थी। जो नाहट, जुबैर, दानिश और अमरीश से साथियों के सहयोग से जंगल से तोड़कर प्लास्टिक में लाया था। इसकी प्लानिंग एक सप्ताह पहले ही बना ली गई थी। कौन अलकुस्सी लेकर आयेगा और कौन इसे बेंच पर छींटेगा। स्कूल की कुछ लड़कियों ने मेघलाल सर से जानबूझकर नाहट और और उसके दोस्तों की शिकायत करके उन्हें पिटवाया था। और इसका बदला लेना लड़कों के लिये, उनके साख की बात हो गई थी। और छठी कक्षा की बेंच पर नाहट के दोस्तों ने मिलकर बेंच पर अलकुस्सी छिड़क दिया था। फिर जो हंगामा स्कूल में हुआ था, वो देखते ही बनता था। सारी लड़कियाँ अपना पूरा बदन खुजा-खुजा कर परेशान थीं। परेशान इतनी बढ़ गई कि खुजाते-खुजाते लड़कियों का शरीर लालम-लाल हो गया था। ये बात मेघलाल सर को पता चली। तो मेघलाल सर अजगर की तरह लड़कों पर फुफकारने लगे थे। वो, लाल-पीला होने लगे थे। उनका शरीर ग़ुस्से से काँपने लगा था। उन्होंने बेहया के मोटे-मोटे दो-तीन डंडे तिवारी से मँगवाये और नाहट, अमरीश, जुबैर, बिंद्रा की जमकर धुनाई कर दी थी। 

नाहट और दूसरे साथियों के हाथ-पाँव जगह-जगह से फूल गये थे। वो, लोग घर में आख़िर क्या बताते? किसलिये मार खाई है। बताने का तो सवाल ही नहीं उठता था। संदीप तिवारी क्लास का माॅनीटर था। वो, चुन-चुनकर बेहया के डँडे लेकर आता। मेघलाल सर पाँच कहते, वो, सात-आठ डँडे लेकर आता। और सारे डँडे हम बेक़ुसूर के दोस्तों पर पड़ते। इसके कारण भी संदीप हमारा ख़ासा बड़ा दुश्मन बन गया था। वो, क्लास में मेघलाल सर का चहेता था। वो, नाजनीन, देवकी, माला के बीच का एक अकेला कृष्ण था। लेकिन अब वो हमारे टारगेट पर रहने लगा था। हम लोगों की अव्वल तो इन लड़कियों से दुश्मनी थी। संदीप तो ख़ैर दूसरे नंबर पर था। 

हमारी उम्र छोटी तो ज़रूर थी। लेकिन हमारे मंसूबे बहुत बड़े-बड़े थे। मेघलाल सर और पी.टी. सर और साईंस टीचर इन तीनों को पीटने का हम लोग रोज़-रोज़ प्लान बनाते रहते थे। 
♦    ♦    ♦
नाहट को तैराना नहीं आता था। लेकिन, तीसरी-चौथी क्लास से वो स्कूल से बंक मारना सीख गया था। उसके स्कूल से लगभग दो किलोमीटर दूरी पर एक जंगल था। लगभग एक किलोमीटर पर एक नदी थी। नदी बहुत गहरी तो, नहीं थी। लेकिन, इतनी गहरी तो थी ही कि उसमें कोई डूब जाये। मखमूर, नाहट का बहुत अच्छा दोस्त था। वो गर्मियों की एक सुबह थी जब नाहट और मखमूर नदी में स्कूल से बंक मारकर नहा रहे थे। नाहट को तैरना नहीं आता था। लिहाज़ा वो डूबने लगा था। तब छपाक से मखमूर ने तैरकर नाहट को बचा लिया था। आज भी जब दोनों दोस्त मिलते हैं तो उस डूबने वाली घटना और मखमूर के बचाने वाली बात नाहट को हँसाती है। नाहट, मखमूर, जुबैद, अमरीश, दानिश और बिंद्रा इन लोगों का एक ग्रुप था यानी चौथी-पाँचवीं कक्षा में। उन दिनों नाहट और उसके दोस्त लड़कियों को इंप्रेस करने के लिये तुलसी मिक्स खाते थे। अपनी क्रश लड़कियों के मुँह पर सिगरेट के छल्ले उड़ाते थे। नाहट की सोच थी कि सिगरेट पीने से लड़कियाँ इंप्रेस होती हैं। 

उन्हीं दिनों की बात है तब नाहट की उम्र मात्र चौदह साल की थी। उन दिनों उसने पहली बार हस्त-मैथुन किया था। पहली बार उससे कुछ नहीं हो पाया था। लेकिन, फिर धीरे-धीरे उसे बहुत मज़ा आने लगा था। अब वो दो-चार दिनों में अक़्सर हस्त-मैथुन करने लगा था। उसे बड़ा मज़ा आता था। बाद में नौंवी-दसवीं में उसके हाथ डाइजेस्ट लगा था। उसमें कामुक और उत्तेजक कहानियाँ होती थीं। डाइजेस्ट पढ़ने का उसका शौक़ बढ़ता ही जा रहा था। डाइजेस्ट की किताब पंद्रह रुपये की आती थी। ये किताब माखन लाल की दुकान पर बिकती थी। 

माखन लाल बड़ा अच्छा आदमी था। लेकिन अफ़ीमची था। वो, फ़ुटपाथ पर एडल्ट किताबें बेचता था। ज़्यादातर किताबें डाइजेस्ट और एडल्ट लिट्रेचर की होती थीं। मस्तराम को नाहट ने पहली बार बोर्ड के इम्तिहान के वक़्त पढ़ा था। 

अजीब-अजीब रोमांचित करने वाली उसमें कहानियाँ होतीं थीं। उसमें मामी और भाँजे की कहानी। मौसी और लड़के की कहानी। सब्ज़ी वाली की कहानियाँ हुआ करतीं थीं। जिसको रस ले-लेकर नाहट और उसके दोस्त पढ़ते थे। 

उन्हीं दिनों उसने व्लादीमीर नबोकोव की किताब ‘लौलिता’ पढ़ी थी। 

उस किताब में कोनी-किल्फर्ड का रोमांचकारी प्रेम-प्रसंग था। नाहट, व्लादीमीर नबोकोव से बहुत प्रभावित था। उस किताब में कोनी-किल्फर्ड का जो प्रसंग था। वो, कुछ ऐसा था कि कोनी मुर्गियों के दड़बे के पास झुकी हुई है। और किल्फर्ड को कोनी के बड़े-बड़े कूल्हे दिखाई दे रहे होते हैं किल्फर्ड उसको प्रेम करने लगता है। ये बात जब भी वो सोचता। उसको जशोदा याद आती। जशोदा एक गुजरातन लड़की थी। उसके कूल्हे भी कोनी के कूल्हे की तरह मादक थे। बड़े कूल्हे वाली लड़कियाँ नाहट को बहुत पसंद थीं। जशोदा की माँ उल्टे पल्ले की साड़ी पहनती थी। उसके माँ के कूल्हे भी बहुत बड़े-बड़े थे। जशोदा की माँ बहुत नाटी थी। जब भी नाहट मस्तराम की किताब वाली कहानियाँ पढ़ता। तो, उसको जशोदा याद आती थी। फिर जशोदा की माँ मंदाकिनी याद आती थी। 

ये बहुत बाद की बात है। नाहट का टेंथ का एग्ज़ाम ख़त्म हो गया था। अब वो, अपने बाप के फलों की दुकान पर हाथ बँटाता था। उसके दुकान के ठीक ऊपर एक ब्यूटी पार्लर था। जिसमें जशोदा बाल कटवाने आती थी। जशोदा, नाहट के साथ बहुत पहले मिशनरी स्कूल में पढ़ती थी। जशोदा का रंग गोरा था। और, वो बहुत ख़ूबसूरत थी। नाहट ने उसको भी एक बार लेटर लिखा था। लेकिन, वो लेटर संयोग से स्कूल के फ़ादर के हाथ लग गया था। शायद, ये लेटर उसके बैग से गिर गया था। या पता नहीं लेकिन, ऐसा ही कुछ हुआ था। उस दिन नाहट को फ़ादर ने बहुत पीटा था। और उसको इस पहली ग़लती के कारण ही स्कूल से एक सख़्त नोटिस देकर छोड़ दिया गया था। तो एक दिन जशोदा उसके यहाँ आई थी। छुट्टे लेने। फल वाली दुकान के ऊपर ही वो ब्यूटी पार्लर था। और नीचे था नाहट की फल वाली दुकान। ब्यूटी पार्लर के नीचे से एक सीढ़ी जाती थी। उसी सीढ़ी पर नाहट ने पहली बार जशोदा का चुंबन लिया था। उसके होंठों की मिठास जेनिफ़र के आमावट वाली मिठास की तरह थी। सचमुच नाहट को उस दिन बहुत मज़ा आया था। 
♦    ♦    ♦
उन दिनों बैगी पैंट का चलन हुआ करता था। जो आजकल की महिलाओं का प्लाजो सरीखा पैंट हुआ करता है। कुछ-कुछ वैसा ही। बालों को बड़ा-बड़ा रखने का चलन था। नाहट बालों को बड़ा करके रखता था। लड़कियों को इंप्रेस करने के लिये। वो और मखमूर लंबे-लंबे बाल रखते थे। चौदह साल की उम्र में ही मखमूर अपने बाप की मोटर साइकिल चलाकर ले आता था। उस समय उसके बाप ने नयी-नयी सी.डी. डाॅन गाड़ी ख़रीदी थी। वो, लोग उसी मोटर साइकिल से फ़िल्म देखने चले जाते थे। अजंता टाॅकीज। मखमूर और नाहट कई बार रविवार को छट्टी वाले दिन उसी बीहड़ जंगल में चले जाते थे। बीयर पीने। बीयर पीने का उनको चस्का चौदह-पंद्रह साल की उम्र में लग गया था। बाद में नाहट और उसके साथी मखमूर माल्टा भी पीने लगे थे। जब पैसे नहीं होते तो पाऊच भी चल जाता था। कई बार पैसे नहीं होने पर मखमूर अपने बाप की जेब से पैसे निकाल लेता था। नाहट और मखमूर उसी जंगल में पार्टी करते थे। मखमूर का बाप कसाई था। मच्छी भी बेचता था। उसके दुकान पर बकरे का गोश्त भी बिकता था। उसके बाप ने दो शादियाँ की थीं। मीट उसके दुकान पर मिल जाता था। मखमूर मीट अपने पाॅकेट में पन्नी में भरकर ले आता था। अमरीश के बाप का चौक पर होटल था। उसका बाप ठरकी था। दिन भर शराब के नशे में धुत्त रहता था। अमरीश अपनी दुकान से मीट भूँजवा कर लाता था। और नदी किनारे नाहट के साथ पार्टी चलती थी। बिंद्रा के बाप की एक बेकरी की दुकान थी। उसमें मक्खन और ब्रेड मिलता था। जब पैसे नहीं होते थे। तो बिंद्रा अपनी दुकान से मक्खन और सिंकी हुई ब्रेड ले आता था। हमेशा नाहट, मखमूर, बिंद्रा और अमरीश के पास पैसे नहीं होते थे। इसलिए कभी बियर और कभी-कभी ठर्रा भी चल जाता था। नाहट और, उसके दोस्तों को जंगल में मंगल अक़्सर वे लोग मिलकर करते थे। जब कोई जुगाड़ नहीं होता तो बिंद्रा ताड़ी के लिये शाम को उसी जंगल में लबनी बाँध देता था। सुबह-सुबह एक दो लबनी ताड़ी मिल जाती थी। पेड़ पर चढ़ने और उतरने में बिंद्रा को महारत हासिल थी। उसके जाँघ बहुत मज़बूत थे। कारण कि बिंद्रा के घर में घोड़े थे। उसके दूर के एक चाचा साईस थे। मौक़ा पाकर बिंद्रा घुड़सवारी भी करता था। मखमूर की डिग्गी में एक पुरानी मच्छर दानी थी। उसका बाप उससे मच्छी पकड़ता था। जब नाहट को बीयर के साथ कुछ खाने को नहीं मिलता। तो मखमूर जंगल वाली नदी में मच्छर दानी डालता। आप यक़ीन नहीं करेंगे। उस मच्छर दानी में खाने पीने भर मछलियाँ फँस जाती थीं। फिर, जंगल में ही आग सुलगाई जाती थी। और मछली को आग पर भूनकर खाया जाता था। बीयर और मछली की एक बेहतरीन पार्टी होती थी। 
♦    ♦    ♦
नाहट जब कक्षा पाँच में पढ़ता था। तो एक बंगालन लड़की सुमी चटर्जी भी उसके साथ पढ़ती थी। उसका चेहरा गोल था। उसकी छातियाँ भी भरी-भरी थीं। लेकिन, उसको डिंपल नहीं पड़ते थे। बावजूद इसके वो नाहट की मन पसंद लड़की थी। इसका कारण था कि वो बहुत गोरी और बहुत ख़ूबसूरत थी। 

कक्षा जब लगती थी। तब, सभी छात्र और छात्रायें नीचे ज़मीन पर बैठकर पढ़ते थे। बंगालन, दुधिया गोरी थी। वो नेकर पहनकर आती थी। उसकी नेकर से उसकी जाँध बाहर झाँकती रहती थी। जो कि बहुत ख़ूबसूरत थी। क्लास रूम बहुत छोटा और संकुचित था। कमरे में छात्रों की संख्या बहुत ज़्यादा होती थी। लिहाज़ा छात्र-छात्राओं को बहुत सटा-सटाकर बिठाया जाता था। सुमी चटर्जी और नाहट रोज़-रोज़ एक ही जगह पर बैठते थे। साथ-साथ ज़मीन पर बैठने के कारण दोनों की दुधिया जाँघे एक दूसरे से सटतीं तो नाहट रोमांचित हो जाता था। 

♦    ♦    ♦

नाहट को जब आख़िरी बार प्रेम हुआ था। तो उस लड़की का नाम मुदिता था। मुदिता के गाल कश्मीरी सेब की तरह गोल-गोल और लाल-लाल थे। उसकी छातियाँ भरी-भरी थीं। लेकिन, उसको डिंपल नहीं पड़ते थे। मुदिता को भी लगता था कि नाहट उससे प्रेम करता है। मुदिता का कोई पति नहीं था। जो था भी वो मर चुका था। नाहट की दिली ख़्वाहिश थी कि वो जेनिफ़र की तरह उसे बार-बार प्रेम करे। लेकिन, मुदिता एक नंबर की बेवकूफ़ थी। बहुत ज़िद्दी, घटिया और एक नंबर की घमंडी लड़की थी, मुदिता। वो, इशारे नहीं समझती थी। वो, उसको, गड मार्निंग विश करता था। तो, वो उसको ब्लॉक कर देती थी। वो मुदिता से बहुत प्यार करता था। वो लड़की उम्र में उससे बहुत सीनियर थी। जिस समय नाहट को उससे प्रेम हुआ था, उस समय मुदिता पचास की रही होगी। लेकिन, उसके होंठ संतरे के फाँक की तरह मोटे-मोटे और रसीले थे। कमर बहुत भारी थी। वो, उसको प्यार करने के लिये ठंड के महीने का इंतज़ार करना चाहता था। मुदिता को लेकर उसने बहुत सारे ख़्वाब बुन रखे थे। वो चाहता था मुदिता को उसके पति के मर जाने पर वो उसको उसके पति का सारा सुख दे। वो, एक ठंडी रात जो बर्फ़ की तरह ठंडी हो मज़बूत पलंग के ऊपर वो और मुदिता जमे हों। साँसों से साँसें टकरायें। लिहाफ़ में मुदिता की सिसकारियाँ गूँजे। कुछ इस तरह का प्यार वो मुदिता से करना चाहता था। लेकिन मुदिता ने, उसे तीसरी बार ब्लॉक कर दिया था। 

नाहट का दुःख बहुत बड़ा था। उसने व्हाटसएप खोला। नंबरों को स्क्रोल किया। मोबाइल पर मुदिता टाइप किया। पहले इसमें मुदिता का चेहरा दिखाई देता था। वो अब ब्लैंक था। 

ब्लॉक का ऑप्शन किल्क किया। उसके हाथ काँप रहे थे। उसको कँपकँपी छूट आयी। लगा वो वहीं कुर्सी पर बैठे-बैठे बेहोश हो जायेगा। वो जिससे सबसे ज़्यादा प्रेम करता था। उसको ब्लाॅक कर रहा था। जिससे प्रेम किया जाता है। उसको कभी ब्लाॅक नहीं किया जाता। उसने आख़िरी बार फिर उस व्हाटसएप वाली ख़ाली डी.पी. को देखा। ख़ाली डी.पी. उसे मुँह चिढ़ा रही थी। 

उस समय नाहट के ज़ेहन में टाइटैनिक फ़िल्म का आख़िरी दृश्य उभर आया था। पटरे पर इस बार जैक था। और रोज़ की ठुड्डी, की जगह मुदिता की ठुड्डी थी। धीरे से नाहट ने मुदिता की ठुड्डी को पटरे पर से अलग किया। और मुदिता ठंडे पानी में समंदर के अंदर समा गई। 

सचमुच वहाँ उस समय वहाँ बहुत ठंड थी। ठंड से बचने के लिये नाहट ने सिगरेट सुलगा ली। धीरे-धीरे सिगरेट से धुँआ छूटने लगा। उस धुँए में लीला का चेहरा नूमायाँ होने लगा था। हँसती हुई लीला। जिसको डिंपल नहीं आते थे! जिसकी छातियों में मादकता नहीं थी। जो बहुत क्रूर थी। जिसका व्यवहार हाई स्कूल में बहुत रूखा-रूखा हो गया था! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में