सूखा

महेश कुमार केशरी  (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सूखा इसलिये भी पड़ता है
कि आदमी की हिम्मत जवाब
ना दे
और एक उम्मीद
बँधे कि सूखा कभी-कभी
पड़ता है . . .
लेकिन धरती पर
हरियाली कभी ख़त्म नहीं होगी . . .
जैसे पतझड़
हर साल आता है
कि हर पतझड़ के बाद
वसंत का आना तय है!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
लघुकथा
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में