तमगा
महेश कुमार केशरीस्वंतत्रता दिवस का सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने पूरे शबाब पर था।
स्टेज से कार चालक रफीक मियाँ को आवाज़ देकर पुकारा गया। रफीक मियाँ भीड़ के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँचे।
राष्ट्राध्यक्ष मुदित मन से तमगे की थाली से तमगा लेकर रफीक मियाँँ के सीने पर टाँगते हुए बोले, ”मुझे बहुत फ़ख़्र है तुम पर। तुमने कार को आतंकवादियों से बचाकर दसियों लोगों की जान बचाई थी। तुम उस दिन कार में ना होते तो पता नहीं उन निर्दोष लोगों की जान कैसे बचती। इस मिट्टी का हक़ बख़ूबी अदा किया है तुमने। मुझे गर्व है तुम पर रफीक मियाँँ।”
तभी राष्ट्राध्यक्ष की नज़र रफीक मियाँँ के आस्तीन पर गई। जहाँ से एक हाथ ग़ायब था। राष्ट्राध्यक्ष ने कौतूहल से पूछा, “ये कब हुआ, और कैसे हुआ?”
रफीक मियाँँ थोड़ा सँभलते हुए बोले, “उस घटना में मेरा एक हाथ चला गया था। एक गोली हाथ में लगी थी। ज़हर पूरे शरीर में ना फैल जाये, इसलिये एक हाथ काटना पड़ा। शुक्र है पैसेंजर को कुछ नहीं हुआ। नहीं तो लोग कहते कि मुसलमान था, इसलिये आतंकवादियों से मिलकर हिंदूओं को मरवा दिया! दु:ख इस बात का है कि हमारी क़ौम को बार-बार अपनी देशभक्ति का सबूत देना पड़ता है। लोग हमें शक की नज़र से देखते हैं। पता नहीं ये लोग कब तक इस नफ़रत को सींचते रहेंगें। रही बात मिट्टी की तो सबको इसी मिट्टी में मिलना है। हाँ, एक ज़हर देश में ज़रूर फैल रहा है। इस नफ़रती ज़हर को अगर ना रोका गया तो ज़रूर ये मुल्क बरबाद हो जायेगा।”
इसके बाद स्टेज पर जैसे सबको साँप सूँघ गया था। और माईक बहुत देर तक ख़ामोश रहा।