मच्छर और राफेल की ज़रूरत
महेश कुमार केशरी
ग़ौर से हम देखें तो पाकिस्तान और मच्छर एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। दोनों छुपकर ख़ून पीते हैं। आपको विश्वास नहीं हो रहा है। तो आप गर्मी, या बरसात में कहीं भी खुले में बैठकर, सोकर या लेटकर देखिए। मच्छर आपको काट खाएँगें। इसी तरह पाकिस्तान भी मच्छर की तरह ही है। लेकिन वो गर्मी, बरसात या सर्दी का इंतज़ार नहीं करता। जब मन होता है, पूरी दुनिया में जब जैसे भी मौक़ा मिले वो लोगों को काट लेता है।
मच्छर और पाकिस्तान दोनों काटने के बाद बाथरूम या लैट्रिन में जाकर छुप जाते हैं। गंदे लोगों की गंदी पसँद! पाकिस्तान भी ऐसा ही करता है। वो देश दुनिया की मासूम जनता को धोखे से मारता है। आमने-सामने कभी वो हमारे देश से नहीं लड़ता। उसको पता है कि सामने पड़ने पर हमारा देश उसको मच्छर की तरह मसल कर रख देगा।
पाकिस्तान को पता है कि हमारे देश के सामने उसकी औक़ात एक मच्छर से ज़्यादा की नहीं है। बावजूद उसके वो छिप-छिपकर हमारे देश की निरीह जनता और सेना पर पीठ पीछे वार करता है। मच्छर भी छिपकर ही काटता है! पाकिस्तान भी!
इसी तरह जब हम सोने वाले होते हैं। तो मच्छर लोग हमारी मच्छरदानी के पास सटकर हमारे कानों में “ऊँ-ऊँ” की आवाज़ करते हैं। ग़लती से आप कहीं खटिया या चौकी या पलंग पर लेट गये हैं और मच्छरदानी नहीं लगायी है तब तो उस दिन मच्छर-लोगों की पार्टी हो जाती है।
पाकिस्तान की भी हालत कुछ-कुछ ऐसी ही है। वो चाईना के फुसफुसिया ड्रोन से हमला करता है—वो भी छुपकर। लेकिन हमारे बहादुर जवानों के आगे ससुरे की औक़ात मच्छर जितनी ही है। फट से काट कर झट से मच्छर की तरह भाग जाता है।
मच्छर और पाकिस्तान दोनों बहुत छोटे हैं। बावजूद इसके पूरी दुनिया इनसे परेशान है। दुनिया के बहुत से हिस्सों में जो फ़िदायीन हमले होते हैं। उनको पालने-पोसने वाला पाकिस्तान ही है। मच्छर और पाकिस्तान में और भी बहुत सी बातें समान हैं। दोनों का जीवन चक्र गंदगी से शुरू होता है। और गंदगी में ख़त्म हो जाता है। दोनों संडास या कीचड़ में जमें गंदे पानी में जन्म लेते हैं। दोनों की सोच में विकृति है। एक डेंगू और मलेरिया फैलाता है—दूसरा आतंकवाद।
वहीं कुछ विकसित देश भी हैं जिनको अपने हथियार बेचने हैं। ये हथियार इन मच्छरों के काटने से बचाने वाले हैं। जिनको कि हम स्वीटड्रीम क्वाइल, स्वीट नाइट लिक्विडेटर, एंटी माॅस्कीटो क्रीम मान लेते हैं। जिसको शान्ति से ज़िन्दा रहने वाले हर देश को ये चाहिए। लिहाज़ा मच्छर होने चाहिए।
सारा खेल इन मच्छरों का है।
इन्हीं मच्छरों को इन विकसित देशों को अपना हथियार भी बेचने हैं। हथियारों के ख़रीददार ये मच्छर ही हैं। दरअसल सही मायनों में आतंकवाद के सरपरस्त यही वो विकसित देश हैं, जिनकी सरपरस्ती में पाकिस्तान जैसे मच्छरनुमा देश उछल-उछल कर पूरी दुनिया के लोगों को काटते हैं। इन विकसित देशों ने ही इस आतंकवाद जैसी समस्या क़ो स्थायी बनाकर रखा हुआ है।
एंटी माॅस्कीटो क्रीम है जिसको शरीर पर मलकर हम कुछ समय के लिए इन मच्छरों से बच सकते हैं। चाहें तो ये विकसित देश एक बार में ही ऐसे लिक्विडेटर बना सकते हैं, जिससे पाकिस्तान सरीखे मच्छर पर अगर एक बार छिड़काव कर दिया जाये तो उनका समूल नाश हो जाए। लेकिन यहाँ बाज़ारवाद भी एक कारण है। इन विकसित देशों की अपनी महत्वकांक्षाएँ और लालच हैं। उनको ताक़तवर बने रहना है। और हम लोगों के लिए मच्छर जैसी छोटी-छोटी समस्या रख छोड़नी है, जिससे हम दूसरे कामों में ना लग सकें। जो विकसित देश रफाल बना सकता है—उसको भी तो आतंकवाद से ख़तरा है। चाहें तो पाकिस्तान जैसे मच्छर को तुरंत मसल दें लेकिन इनकी नियत में खोट है। अगर मच्छर ना रहेगा तो शान्ति या अमन पसंद लोग एंटी माॅस्कीटो क्वाॅईल क्योंकर ख़रीदेंगे? जब लड़ने वाले देश ही ना रहेंगे तो इन विकसित देशों के हथियार आख़िर कौन ख़रीदेगा? इनका व्यापार चौपट जो हो जायेगा। सब लोग डर में हथियार ख़रीदकर रख रहे हैं—एंटी माॅस्कीटो क्वाॅईल। ताकि वो चैन से सो सकें। लेकिन लिक्विडेटर का जब तक प्रभाव रहता है, तभी तक मच्छर नहीं लगते। हालत ये है कि जब तक मच्छर रहेंगे तब तक इनके हथियार बिकेंगे। इसलिए ये जो अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष है, वो पाकिस्तान जैसे मुल्क को क़र्ज़ देता है। ताकि ये मच्छर ज़िन्दा रहें और लोगों की नींद हराम करते रहें!
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