बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं

15-03-2025

बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: रमल मुसद्दस महज़ूफ़
अरकान: फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
तक़्ती'‌अ: 2122    2122    212
 
बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं
ख़ुद ब ख़ुद ये हादसा होता नहीं
 
सोच की अपनी वो इक तस्वीर है
आदमी ख़ुद से जुदा होता नहीं
 
चाहते हद से न ज्यादा तुम अगर
इस तरह वो बे-वफ़ा होता नहीं
 
बात बच्चों की अगर होती नहीं
तो कभी वो बे-हया होता नहीं
 
कर वफ़ा के नाम अपनी ज़िंदगी
प्यार बिन इसमें मज़ा होता नहीं
 
कोई ऐसी शय कहाँ दुनिया में है
आशना जिससे ख़ुदा होता नहीं
 
गुम-शुदा हैं लोग उस ख़त की तरह
जिस लिफ़ाफ़े पर पता होता नहीं
 
सच हमेशा बोलती है शायरी
झूठ ‘शोभा’ कुछ छुपा होता नहीं

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में