गहराई और तन्हाई

01-04-2020

गहराई और तन्हाई

राजीव कुमार (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

गहरी नदी के शांत जल में नाव पर राकेश ध्यान मग्न बैठा हुआ था। चप्पुओं की हल्की-हल्की आवाज़ आ रही थी और नाव वाला कुछ गुनगुना रहा था। नाव वाले ने पूछा, "कहाँ खोए हो बाबू जी? भौजाई की याद आवत है का?" 

अपने प्रश्न पर यात्री को उदास हुआ देखकर नाववाले ने माफ़ी माँगी। जब नाववाले का मन नहीं माना तो फिर उसने प्रश्न किया, "आपके बीबी-बच्चे कहाँ हैं? साहब, मतलब आप किस शहर से हैं?" 

यात्री को अपनी ओर पथराई आँखों से घूरता देखकर नाववाले ने नज़र नीची कर ली।

"यहाँ हैं मेरे बीबी-बच्चे," यात्री के जवाब पर नाववाले ने जब उसकी ओर देखा तो उसे अटपटा सा लगा, और कुछ समझ में नहीं आया, क्योंकि राकेश की उँगलियाँ नदी की गहराई की और इशारा कर रही थीं। "हाँ इसी नदी में हैं मेरे बीबी-बच्चे, एक बाढ़ ने मेरे बीबी-बच्चे को हमेशा के लिए छीन लिया।" 

राकेश की आँखें नम हो आई थीं। नाव वाले ने शांत जल की ओर देखा, बाढ़ का इतिहास याद करने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डाला। राकेश के पत्थर से मज़बूत मन को महसूस कर नाववाला ख़ुद सोच में पड़ गया।

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