भाई का हिस्सा

01-08-2021

भाई का हिस्सा

राजीव कुमार (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

आरोप बेहद संगीन था। इस केस को लंबा खींचने या अगली तारीख़ देने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठ रहा था, क्योंकि मामला पानी की तरह साफ़ था। जयनाथ बाबू के छोटे भाई की पत्नी ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। कुछ वकीलों ने तो जयनाथ बाबू का पक्ष लेने से साफ़ मना कर दिया था, फिर भी एक कम अनुभवी वकिल ने उनका केस लड़ा मगर एक पड़ोसी की गवाही के बाद उस कम अनुभवी वकील का रहा-सहा अनुभव भी जाता रहा। जयनाथ बाबू ख़ुद को निर्दोष साबित करने में असफल रहे। वैसे भी चार दीवारी का बहुत सारा सच साबित नहीं हो पाता है।

लोगों से खचाखच भरी अदालत में जज साहब ने अपना चश्मा उतारकर फ़ैसला सुनाते हुए कहा, "गवाहों के बयानात से यह साबित हुआ है कि जयनाथ ने यौन उत्पीड़न किया है, लिहाज़ा इनको दंड दिया जाता है।"

अपनी क़लम चलाने के पहले जज साहब ने जयनाथ बाबू से पूछा, "मैं पर्सनली जानना चाहता हूँ कि इस घृणित कार्य की प्रेरणा कहाँ से मिली? अच्छा ये बताइए आपको साहस कहाँ से मिला? अपने छोटे भाई और उसकी पत्नी की नज़रों से गिरने के बाद कैसा महसूस हो रहा है?  हमको मालूम है कि आपके पास मेरे किसी भी प्रश्न का जवाब नहीं है, फिर भी अगर आप चाहें तो एक वाक्य में जवाब दे सकते हैं।"

जयनाथ बाबू ने अपने छोटे भाई की तरफ़ फिर कठघरे में खड़ी उसकी पत्नी की तरफ़ देखकर, अपने आँसू पोंछकर कहा, "सच है जज साहब, मेरे पास आपको विश्वास दिलाने के लिए कोई जवाब नहीं है, लेकिन एक बात कहना चाहूँ कि कल हम दोनों भाइयों में ज़मीन-जायदाद का बँटवारा होनेवाला है।"

शांत हो चुकी भीड़ की तरफ़ जज साहब ने देखा फिर थोड़ी देर सोचने के बाद उन्होंने अगली तारीख़ दे दी।
 

2 टिप्पणियाँ

  • 3 Aug, 2021 09:59 PM

    पहली बार लगा लघु कथा पढ़ रहे हैं । लघुकथा शीर्षक सफल रहा । कम शब्दों में गंभीर विचार जो पाठक को झकझोर दे।बहुत बधाई आपको श्रीमान । शुभकामनाएँ

  • उफ़्फ़! विचित्र सोच

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