वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं 

01-12-2022

वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं 

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

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वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं 
किसी को क्या कहें हम बदनसीबियों के मारे हैं
  
अरे तेरी क्या हमने ख़ुद की दुनिया भी जला डाली 
बचा क्या जो नज़र में आ रहा बुझते अंगारे हैं 
 
जो ग़ैरों के इशारों पर ही जीते और मरते थे 
वो तो तक़दीर को रोते बड़े ही बेसहारे हैं
  
हमेशा जानबूझकर के ख़ता जो करते हैं उनको 
कोई कैसे कहे वो तो बड़े नादां बेचारे हैं 
 
जो ग़म तुमने उठाए हैं हमको भी उठाने दो 
हमारा कुछ ना बिगड़ेगा ये ग़म ही तो सहारे हैं

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