बेक़द्री

15-11-2022

बेक़द्री

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“शराबी तो बोतल के तले चाटकर पी जाते हैं; पर मैंने आते हुए देखा है कि इस गाँव के रास्ते में, इधर-उधर शराब की आधी-आधी भरी बोतलें बिखरी पड़ी हैं . . . भाई! यहाँ पर क़ीमती शराब की इतनी बेकदरी बेक़द्री क्यों हो रही है?” शहर से गाँव में आ रहे एक मेहमान ने पूछा। 

“आपको पता नहीं, पंचायत के चुनाव नज़दीक आ गए है,” मेज़बान ने मेहमान को समझाया।

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