बहादुरी

15-11-2021

बहादुरी

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैं उसकी मोटरसाईकिल के पीछे बैठ तो गया; पर पछताया बहुत। क्योंकि टूटी-फूटी सड़क पर, उसने मोटरसाईकल इतनी तेज़ गति से चलाई कि मेरी कमीज़ की जेब में रखे हुए कुछ सिक्के भी उछलकर गिर गए।

बलदेवनगर पहुँचने पर, वह अपनी बहादुरी दिखाते हुए बोला, “मैंने सिर्फ़ पचास मिनट में गाड़ी यहाँ लगा दी।“

“साठ मिनट भी लग जाते तो क्या होता . . . ? “

मैंने धीरे से कहा।

जिसे सुनकर, वह कुछ बोला तो नहीं; पर रहस्यमयी नज़रों से मेरी तरफ़ देखने लगा।

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