आग 

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

“शानो! क्या यह सच हैं कि तुम्हारी बेटी के घर मेंं आग लग गयी हैं, सब कुछ जलकर राख हो गया हैं . . . ?” पड़ोसन ने शानो से पूछा। 

“. . . असल मेंं आग तो मेंरे घर मेंं लगी हैं!” शानो गंभीरता से बोली। 

“क्या मतलब?” पड़ोसन हैरान हुई। 

“मतलब यह हैं कि मेरी बेटी के घर में आग लगने से जो नुक़्सान हुआ है, वो मुझे ही भरना पड़ेगा,” शानो ने पड़ोसन को समझाया। 

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