मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ 

15-10-2022

मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ 

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

2122        2122       2122       2122 
 
मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ 
इतनी जल्दी क्या पड़ी है मुझपे कुछ तो तरस खाओ 
 
मैं तो कब का मिट चुका हूँ यारो फिर भी जी रहा हूँ 
मेरे कुछ अरमान जो ज़िन्दा हैं उन्हें ना मिटाओ
 
जो जहन्नुम के सिवा कुछ ना देख पाया जहाँ में 
कैसे ज़ाहिद हो उसे जन्नत का दर ना दिखाओ 
 
हर कोई शर्मिंदा हैं काफ़िर अभी तक जी रहा है 
तुमको किसने रोका है तुम भी लठ ले आओ
 
क्या सही है क्या ग़लत है ये तो उसको ही ख़बर है
सच को समझो टाँग उसके मामले में ना अड़ाओ

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
ग़ज़ल
कविता
सांस्कृतिक कथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में