रावण का ख़ून
सुनील कुमार शर्माहर वर्ष की तरह इस बार भी शहर के दशहरा मैदान में रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतलों के चारों ओर श्रीरामचंद्र जी और रावण के सेनाओं में महासंग्राम चल रहा था।
तभी बहुत बड़े गाड़ियों के क़ाफ़िले के साथ वहाँ पहुँचे एक श्वेताम्बरधारी नेता को देखकर मेघनाद के पुतले ने रावण के पुतले से पूछा, "पिताश्री! यह कैसा योद्धा है, जो युद्ध तो कर नहीं रहा है फिर भी इतने दलबल के साथ युद्धक्षेत्र में आया है?"
"पुत्र! यह हमारी असुर बिरादरी से है, जिसे आज के युग में नेता कहते हैं . . . यह इसलिए यहाँ आया है कि जब युद्ध में हम वीरगति को प्राप्त होंगे तो यही हमको आग लगाएगा; क्योंकि यह हमारा अपना ख़ून है।"
रावण ने मेघनाद को यह समझाया ही था कि इतने में श्रीरामचंद्र जी ने अपना आख़िरी बाण रावण पर चला दिया। और इशारा पाते ही नेता जी ने भी रिमोर्ट का बटन दबा दिया। जिससे रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले धूँ-धूँ करके जलने लगे।
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