बादशाह और फ़क़ीर
सुनील कुमार शर्मा
एक बादशाह मरणासन अवस्था में पड़ा हुआ था। बड़े-बड़े हकीमों के प्रयास असफल हो चुके थे। बादशाह के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। तभी कोई एक फ़क़ीर को पकड़ कर ले आया। उसका कहना था कि इस फ़क़ीर की करामात से कई बार मुर्दे भी ज़िन्दा हो चुके हैं। उस फ़क़ीर ने आते ही बादशाह के चेहरे पर थूक दिया। कुछ देर बाद ऐसा चमत्कार हुआ कि राजा उठकर बैठ गया। सभी लोग उस करामाती फ़क़ीर की जय-जयकार करने लगे। जिसे सुनकर बादशाह ईर्ष्या से जल उठा, “चुप करो! मेरे होते हुए किसी दूसरे की जय-जयकार नहीं हो सकती . . . अगर आपने यह बकवास बंद नहीं की तो मैं सबके सर क़लम करवा दूँगा।”
जिसे सुनकर सभी लोग घबरा गए। आख़िर एक दरबारी हिम्मत करके बोला, “जहाँपनाह! इसी फ़क़ीर ने आपके चेहरे पर थूका था, जिससे आप ठीक हुए है; इसीलिए हम इसकी जय-जयकार कर रहे है।”
जिसे सुनकर बादशाह आपे से बाहर हो गया, “इस भिखारी ने मेरे चेहरे पर थूकने की ज़ुर्रत कैसे की?” फिर उसने सिपाहियों को हुक्म दिया, “इसी वक़्त, बिना देर किये इस नामुराद को सुली पर चढ़ा दो।”
बादशाह के हुक्म की तामिल हुईं।
बादशाह बड़े तनाव में उसके बेहोश होने के बाद जो कुछ हुआ उसका हिसाब-किताब कर रहा था। जबकि सूली पर टँगा हुआ वह फ़क़ीर बिल्कुल शांत-चित्त था।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अंधा
- असर
- आग
- आसान तरीक़ा
- ईमानदार
- ईर्ष्या
- उपअपराध बोध
- एजेंट धोखा दे गया
- कर्मफल
- कर्मयोगी
- काफ़िर
- किराया
- केले का छिलका
- खरा रेशम
- गारंटी
- चाबी
- चूहे का पहाड़
- झंडूनाथ की पार्टी
- ट्रेनिंग
- डॉक्युमेंट
- तारीफ़
- दया
- दुख
- नाम
- निरुत्तर
- नफ़ा-नुक़्सान
- पानी का घड़ा
- फ़ालतू
- बहादुरी
- बहू का बाप
- बादशाह और फ़क़ीर
- बिजली चोर
- बेक़द्री
- भगवान के चरणों में
- भरोसा
- भिखारी का ऋण
- भीख
- मोल ली मुसीबत
- रात का सफ़र
- रावण का ख़ून
- लाचार मूर्तियाँ
- लड़ाई
- लड़ाई - 02
- समस्या
- सहायता
- साँप
- स्वागत
- हरजाना
- हवा जीती सूरज हारा
- क़ुसूर
- ग़ज़ल
-
- उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
- किस जन्म के पापों की मुझको मिल रही है यह सज़ा
- जा रहा हूँ अपने मन को मारकर यह याद रखना
- तुम ने तो फेंक ही दिया जिस दिल को तोड़ कर
- तेरी उस और की दुनियाँ से दूर हूँ
- तेरे घर के सामने से गुज़र जाए तो क्या होगा
- दिल की दिल में ही तो रह गई
- मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ
- मैं कभी साथ तेरा निभा ना सका
- लुट गयी मेरी दुनिया मैं रोया नहीं
- वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं
- हम तो तन्हाई में गुज़ारा कर गए
- हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
- कविता
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-