समस्या
सुनील कुमार शर्मा“आपने रास्ते के किनारे खड़े छायादार पेड़ को काटकर उस लोगों के लिए समस्या खड़ी कर दी, जो आते-जाते इसकी ठंडी छाया में दो घड़ी विश्राम कर लिया करते थे; क्योंकि इस रास्ते पर कोई दूसरा पेड़ नहीं हैं,” वह कच्चे रास्ते के साथ लगते खेत की मेढ़ पर काटकर गिराए गए पेड़ की ओर इशारा करते हुए खेत के मालिक से बोला।
“इसकी छाया की समस्या के कारण तो इसको काटना पड़ा; क्योंकि इसकी घनी छाया के नीचे एक दाना भी फ़सल नहीं होती,” खेत का मालिक उसे खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए बोला।
“फ़सल के लिए इतना बड़ा खेत क्या कम है . . .?” खेत के मालिक के तेवर देखते हुए, वह इतना कहने की हिम्मत नहीं कर पाया।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अंधा
- असर
- आग
- आसान तरीक़ा
- ईमानदार
- ईर्ष्या
- उपअपराध बोध
- एजेंट धोखा दे गया
- कर्मफल
- कर्मयोगी
- काफ़िर
- किराया
- केले का छिलका
- खरा रेशम
- गारंटी
- चाबी
- चूहे का पहाड़
- झंडूनाथ की पार्टी
- ट्रेनिंग
- डॉक्युमेंट
- तारीफ़
- दया
- दुख
- नाम
- निरुत्तर
- नफ़ा-नुक़्सान
- पानी का घड़ा
- फ़ालतू
- बहादुरी
- बहू का बाप
- बादशाह और फ़क़ीर
- बिजली चोर
- बेक़द्री
- भगवान के चरणों में
- भरोसा
- भिखारी का ऋण
- भीख
- मोल ली मुसीबत
- रात का सफ़र
- रावण का ख़ून
- लाचार मूर्तियाँ
- लड़ाई
- लड़ाई - 02
- समस्या
- सहायता
- साँप
- स्वागत
- हरजाना
- हवा जीती सूरज हारा
- क़ुसूर
- ग़ज़ल
-
- उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
- किस जन्म के पापों की मुझको मिल रही है यह सज़ा
- जा रहा हूँ अपने मन को मारकर यह याद रखना
- तुम ने तो फेंक ही दिया जिस दिल को तोड़ कर
- तेरी उस और की दुनियाँ से दूर हूँ
- तेरे घर के सामने से गुज़र जाए तो क्या होगा
- दिल की दिल में ही तो रह गई
- मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ
- मैं कभी साथ तेरा निभा ना सका
- लुट गयी मेरी दुनिया मैं रोया नहीं
- वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं
- हम तो तन्हाई में गुज़ारा कर गए
- हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
- कविता
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-