भीख

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

बचपन से जिस सेठ के घर उसने बड़ा दिल लगाकर काम किया था। उसी सेठ ने, ज़रा सी ग़लती करने पर, उसे बड़ा बेइज़्ज़त करके काम से हटाते हुए कहा था, “. . . जब गली-गली भीख माँगोगे तब पता चलेगा . . .?” 

उसने काम की तलाश में इधर-उधर बड़े हाथ-पैर मारे; पर सेठ ने उसे इतना बदनाम कर दिया था, कि उसे कोई काम पर रखने को तैयार ना हुआ। आख़िर जब भूखों मरने की नौबत आ गयी तो उसे भीख ही माँगनी पड़ी। 

उधर सेठ को भी काफ़ी धक्के खाने के बाद जब उसके जैसा नौकर ना मिला तो वह उसे ढूँढ़ता हुआ उसके पास पहुँच गया और बोला, “. . . दर-दर की भीख माँग के तुम्हारी अक़्ल ठिकाने आ गयी होगी . . . चलो मैं तुम्हें फिर से काम पर रखता हूँ।” 

“ओ सेठ! तू दिन-रात मुझसे काम करवा के मुश्किल से दो-तीन हज़ार रुपए महीने के देता था . . . अब तो मैं बिना कुछ किये चार-पाँच सौ रुपए दिन में कमा लेता हूँ . . .” वह आगे से अकड़ते हुए बोला। 

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