दिल की दिल में ही तो रह गई

01-02-2024

दिल की दिल में ही तो रह गई

सुनील कुमार शर्मा  (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

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दिल की दिल में ही तो रह गई, 
सारी कोशिश पसीने में जो बह गई। 
 
हम खड़े देखते रह गए, 
सपनो की मंज़िलें ढह गई, 
 
ख़ूब पहरा दिया रातों को, 
फिर भी थोड़ी कसर रह गई। 
 
तन जला ग़म की इस आग में, 
पर मेरी रूह सब सह गई।
  
अपनी यह ग़म भरी दास्तां, 
कहुं क्या, तक़दीर सब कह गई। 

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