हवा जीती सूरज हारा
सुनील कुमार शर्मासदियों बाद एक बार फिर हवा और सूरज मुक़ाबले में आमने-सामने थे। इस बार सूरज ने टॉस जीता; और पहले आक्रमण करने का फ़ैसला किया।
इस बार उसके आक्रमण के निशाने पर, एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे एक खद्दरधारी नेता थे। जिनके सफ़ेद कपड़ों को उतरवाने वाले को विजेता का ख़िताब मिलने वाला था। पूर्व विजेता सूरज के ज़ोरदार आक्रमण से नेताजी पसीने-पसीने हो रहे थे। जिससे वह भाषण देते हुए बार-बार मंच पर पानी मँगवा रहे थे; पर वह जनता के सामने अपने सफ़ेद वस्त्र उतारने को क़तई तैयार न थे—जो पसीने से तर होकर उनके बदन से चिपक गए थे।
जनता भी नेताजी के लोकलुभावन वायदों की ख़ुराक के कारण ज़बरदस्त सहनशक्ति का परिचय दे रही थी। जिससे सूरज को हथियार डालने पड़े; और आक्रमण की बारी हवा की आयी।
हवा के ज़बरदस्त आक्रमण से शामियाने उड़ने लगे। नेताजी के मुँह के आगे रखा माइक दूर जा गिरा। लोग घबराकर इधर-उधर दौड़ने लगे। जिससे भगदड़ मच गयी। नेताजी के अंगरक्षक फ़ुर्ती से नेताजी को वहाँ से निकाल कर ले गए।
रेस्टहाउस के सामने गाड़ी से उतरते हुए नेताजी बोले, “ओ रामसिंह! जल्दी से कोई हल्का-सा सूट निकाल दे . . . इस गाँधी की खादी ने मेरी चमड़ी ही खा ली।”
कुछ ही देर बाद, नेताजी आरामदायक सूट पहनकर रेस्टहाउस में टहल रहे थे। और हवा जीत की ख़ुशी में क़हर बरपा रही थी।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अंधा
- असर
- आग
- आसान तरीक़ा
- ईमानदार
- ईर्ष्या
- उपअपराध बोध
- एजेंट धोखा दे गया
- कर्मफल
- कर्मयोगी
- काफ़िर
- किराया
- केले का छिलका
- खरा रेशम
- गारंटी
- चाबी
- चूहे का पहाड़
- झंडूनाथ की पार्टी
- ट्रेनिंग
- डॉक्युमेंट
- तारीफ़
- दया
- दुख
- नाम
- निरुत्तर
- नफ़ा-नुक़्सान
- पानी का घड़ा
- फ़ालतू
- बहादुरी
- बहू का बाप
- बादशाह और फ़क़ीर
- बिजली चोर
- बेक़द्री
- भगवान के चरणों में
- भरोसा
- भिखारी का ऋण
- भीख
- मोल ली मुसीबत
- रात का सफ़र
- रावण का ख़ून
- लाचार मूर्तियाँ
- लड़ाई
- लड़ाई - 02
- समस्या
- सहायता
- साँप
- स्वागत
- हरजाना
- हवा जीती सूरज हारा
- क़ुसूर
- ग़ज़ल
-
- उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
- किस जन्म के पापों की मुझको मिल रही है यह सज़ा
- जा रहा हूँ अपने मन को मारकर यह याद रखना
- तुम ने तो फेंक ही दिया जिस दिल को तोड़ कर
- तेरी उस और की दुनियाँ से दूर हूँ
- तेरे घर के सामने से गुज़र जाए तो क्या होगा
- दिल की दिल में ही तो रह गई
- मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ
- मैं कभी साथ तेरा निभा ना सका
- लुट गयी मेरी दुनिया मैं रोया नहीं
- वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं
- हम तो तन्हाई में गुज़ारा कर गए
- हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
- कविता
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-